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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १५८ ) आरममहत्ता. गुफामें तो साहेब देखा, सुरत नुरतसें जपना. हा कहुं तो है नहीं, ना कह्यो न जाय; दाना के भितर, कीडी साकर खाय शास्त्र भयो पुराण भन्यो, वेद तो मने खटक्यो; अनंतरूपे प्रभुजी मारो, आकाशमांहि चटक्यो. ७ जोगी जंगम सेवडो, सन्याशी दरवेश; चक्षु सामे प्रभुजी दीठा, वृत्ति आतमदेश. वगर पाणीना तळाव मांहि, खील्युं कमळनुं फूल; बत्ती विना अजवाळु आपे, झगझगति तेनी गुल९ रत्नाकर सागर मांहे, गागर फूटी जाय; पाणी मांहे पत्थर लडे, अगम निगम परखाय. १० आवां अनेक भजनपद अन्य मतावलंबीयो गायछे, किंतु एकांते तेनो अर्थ करवाथी जेवो जोइए तेवो सम्यग् लाभ थतो नथी. अनेकान्तमत ज्ञाता आत्मार्थि अवळाने पण सबळा तरीके परिणमावेछे. For Private And Personal Use Only ५ आत्मज्ञानने माटे प्रयत्न करतो ते अति उपयोगी छे. कथा मात्र कहेवाथीज जो आत्महित थतुं होत तो पुराणीओ बहु कथाओ कछे माटे तेमनुं तो कल्याण धनुं जोइए किंतु तेथी कल्याण थतुं नथी. आत्मतच्चतुं ज्ञान नथी तो एक उदर पोषक कथाथी शुं थाय ? अलबत् कंइ नहीं. मनुष्योना मनतुं रंजन करवायीज जो धर्म थाय तो भाट चारण, नाटकीआ विगेरे जनमनरंजन करेळे ते मने धर्म थवो जोइए परंतु समजवानुं के
SR No.008627
Book TitleParmatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1910
Total Pages432
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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