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परमात्मदर्शन.
तेने
कोई उक्त प्रकारे लिंगरहीत जाणे कोइने शंसयरहीत संभळायछे तेने कोइने शंसयसहीत संभळायछे तेने
संदिग्ध कहेछे. १०
कोइ एक वेळा सांभळी ग्रहण करी लीघेलं ते सदा सर्वदा स्मरण रहे पण वीसरे नही तेने ध्रुव कहे छे ११. अने कोइक एकवार ग्रहण करेलुं सर्वदा स्मरणमां रहे नहीं तेने अधुव कहे छे. १२. एवी रीते बार भेदे ज्ञान थायछे तेने पूर्वोक्त mardia भेदोथी गुगतां त्रणरोंने छत्रीश भेद मतिज्ञानना थाय. तथा तेमां अश्रुत निश्रितना चार भेद मेळवीए तो त्रणसेने चाळीस भेद मतिज्ञानना थाय छे. अर्थावग्रह एक समय प्रमाणछे.
अने अपाय अंतर्मुहूर्त्त प्रमाण छे. धारणा संख्यात असंख्याता काल सुधीछे अथवा द्रव्यक्षेत्र कालभावथी मतिज्ञान चार प्रकारमुंछे.
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अनिश्रित कछे. ८ असंदिग्ध कहेछे. ९
मतिज्ञानी आदेशथी सर्व द्रव्य जाणे पण देखे नही. क्षेत्र की सर्व क्षेत्र लोकालोक जाणे पण देखे नही. Timent आदेशे सर्व काल जाणे पण देखे नही. भावकी आदेशे सर्व भाव जाणे पण देखे नही.
श्रुतज्ञान स्वरूप
श्रुतज्ञान चौद तथा वीश प्रकारछे चौद भेद करेछे
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गाथा.
अख्खर सन्नी सम्मं, साईयं खलु सपज्जवसियं च । गमियं अंग पवि, सत्तविए ए सपविख्खा