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অবলব. भावार्थ-अक्षरभुत, अनारश्रुत, संशीभुत, असंज्ञीश्रुत, सम्यश्रुत, असम्यग्श्रुत, आदिश्रुत, अनादिश्रुत, पर्यवसितश्रुत, अपयवसितश्रुत, गमिकश्रुत, अगमिकश्रुत, अंगमाविष्टश्रुत, तथा अंग बाह्यश्रुत, ए चौद भेद जाणवा. १ अक्षरश्रुत-अक्षरश्रुतना त्रण भेदछे संज्ञाक्षर, व्यंजनाक्षर
तथा लब्ध्यक्षर. तेमां प्रथम संज्ञाक्षर-अढार प्रकारनी लीपी, तथाहि-हंसलिवी, भूयलिवी जरुखातह रख्खसीय बोधवा । उड्डी जवणी तुरुक्की कीरी दवडीय सिंधविया १ माल विणी नडिनागरि लाडीलवी पारसीय बोधव्वा । तह अनमित्तियलिवी चाणकी मूलदेवीय. २ बीजो व्यंजनातर प्रकार ते अकारथी हकारपर्यंत बावन अक्षर मुखे उच्चारवारूप जाणवो ए बने प्रकार यद्यपि अज्ञानात्मकछे तथापि श्रुतना कारण होवाथीं उपचारे करी ए बे प्रकारने भुतझाननी
संज्ञा आपीछे. ३ शब्द श्रवण तथा रूप दर्शनादिक थकी अर्थ परिज्ञान गर्मित जे अक्षरनी उपलब्धि रूप लब्ध्यक्षर श्रुत जाणवू, करपल्लवी आदिके जेथी अक्षर संख्या- ज्ञान थायछे तेनो समावेश लब्धि अक्षर भ्रुतज्ञानमां जाणवो. २ अनक्षरश्रुत-शिरकंपन, हस्तचालन प्रमुख तथा समश्याए
करी गमनागमनादिक मनना अभिमायनुं जे परिज्ञान तेने जाणवू. यथा कोइ मनुष्य कोइ मनुष्यने पृच्छा करे के भाइ बाहेर जावु छ के ? तेनो प्रत्युत्तर मुखथी नहीं देता मस्तक हलावीने अथवा हाथवती शान करीने पोतानी नामरनी अणाववी. पूछनारने तेना मनना अभिमायनुं परिज्ञान (माणपणुं) थाय तेने अनक्षरश्रुत कहेछे.
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