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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Anamnawww परमात्मदर्शन. (१३) rünnainimimmisimiminnan भव करवाथी खातरी थशे. आत्मज्ञानीओ कोइनी पण निंदा करता नथी तेओ तो आ“त्म रूवपमा तल्लीन रहेछे. परना तरफ दृष्टि देता नथी अने कदापि उपकारने माटे परतरफ दृष्टिछे तो पण आत्महितथी अन्य प्रहात्त करता नथी. ___ कोइ विरला जगत्मा आत्म तत्त्वनी शोधमां स्वकाल निर्गमन करेछे, अने कोई विरला परमात्मपदने पामेछे, सत्य तरफ प्रायः दुनीया प्रवृत्ति करती नथी पण असत्य तरफ करेछे ते उपर एक दृष्टांत मुसलमानी धर्ममां प्रगट थयुं छे ते एवी रीते के कोइ एक महान् पादशाहना वखतमां एक फकीरे प्रश्न कर्यो के-हे पादशाह आ सब खलक बुरे रस्तेपर कयुं चल रही हे ? त्यारे एना उत्तरमां पादशाहे फकीरने विज्ञप्ति करी कह्यु के-आपकुं मेरा मुकाम दो वर्षतक रहेना चाहिए. जब आपका सवालका जवाब में देनेकुं शक्तिमान होउंगा-आ उपरथी फकीर बावा त्यां रथा के तुरत पादशाहे पोताना राज्यमांना तमाम अमीर उमरावोने बोलावी हुकम आप्यो के-अमारा खजानामांथी तमाम लक्ष्मी खर्ची एक महा मोटो बाग बनाववो जोइए ने ते बागमां तमाम सृष्टिनी सर्व वस्तुओ प्रगट करीदेवी. बाद तमाम जगत्मांनी सर्व प्रजाने ते वाग जोवा बोलाववी, ने तेमनो तमाम खर्च तेमनी जग्यापर पहोंचाइया सुधी नो आपणे करवो जोइए. आवा प्रकारनो हुकम मळतां सर्व कचेरी मंडळे ताबडतोब आखी पृथ्वीमा रहेला तमाम कारीगरोने बोलाव्या ने तेमना कह्या प्रमाणे असंख्य जातनां साधनो पुरां पाडवा लाग्या. जे उपरथी बसे कोसनी वच्चमां जमीन पहाड समुद्र नाना प्रकारनां तमाम दुनीयामा रहेलां पशुपंखीओ तथा अढारभार For Private And Personal Use Only
SR No.008627
Book TitleParmatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1910
Total Pages432
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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