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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १३३ ) निन्दानों त्याग करवों जोइए. त्मज्ञान थया विना तात्त्विक संतोष थतो नथी माटे आत्मज्ञान कतां सर्व दोषो नाश पामशे. चक्रवर्ती सरखा मोटा राजाओ पण लक्ष्मीनो त्याग करी सुखी थया. आत्मार्थी भव्योए पारकी निंदानो त्याग करवो, कारण के निंदक चंडालछे. निंदक मोटो पापीछे, नाम देइने निंदा करे तो अधम जाणवो. परमां भूल होय पण तेना पूंठे निंदा करवाथी कई फायदो थतो नथी. पापमां शक्तिवाळा पुरुषोने निंदा करवानो स्वभावछे. गंगाजलमां स्नान करनार होय, अडसठ तीर्थनी यात्रा करे किंतु जो ते निंदक छे तो ते अपवित्र अने दुष्ट जाणवो, बहादूर पुरुषो निंदा करता नथी. निंदक कागडाना करतां पण डोछे. अदेखाइथी निंदा उप्तन्न थायछे अने निंदाथी क्लेश उन्न थाय छे अने ते सामा पुरुषना जाणवामां आवे तो परस्पर वैर बंधायछे, निंदक आभवमां तथा परभवमां पण दुःख पामेछे, निंदा करवाथी मित्रनी मित्राइ पण तूटेछे. जो तमे गुणी थवाने चाहताहो के मनुष्यनी घोळी बाजू तरफ दृष्टिद्यो. पण काळी बाजु तरफ दृष्टि द्यो नहीं, हालना वखतमां कोइ सर्व गुणी नथी, कोइ पुरुषनी कोइ निंदा करे तो तेने मनम एम विचारखुं के भले ए निंदे. हुं जो सारो मनुष्य हुं तो तेनी निंदाथी मारे शुं ? निंदकना उपर मारे केम क्रोध करवो जोइए ? सामा मनुष्यनुं हित इच्छवुं होय तो तेना गुण गावा. कोइ निदक निंदा करे तो उलडं निंदकनामां जे गुण होय ते आपणे वखावो पण खराब लागणीथी सामु तेनुं बुरुं करवा प्रयत्न करवो नहीं. कोई आपणा उपर दुष्टता करे तो पण आपणे तेनी तरफ शुभ भावना राखवी, तेनु सारुं करवा शुभ संकल्प करवो एम कस्वाथी सामो पुरुष अंते दुष्टतानो त्याग करशे आ नियमनो अनु For Private And Personal Use Only
SR No.008627
Book TitleParmatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1910
Total Pages432
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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