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परमात्मदर्शन.
( ९९ )
नधी, पौद्गलिक वस्तु उपर शो राग अने द्वेष करवो ? केटलीक वस्तुओ मळे अने केटलीक वस्तुओ नाश पामेछे, सग संबंधी वर्गनी मीति पण स्त्रार्थना लीघे क्षणिक छे. खरी वस्तु आत्माछे, बाह्य पदार्थोंमां मारापणानी बुद्धि थाय छे तेनो नाश थइ अंतर आत्मतत्त्वमां मारापणानी बुद्धि थाय तो परमात्मपद पामी शकाय. घर हाट म्हेल आदि पौद्गलिक वस्तु कारमीछे, सुवर्ण, रुपुं, मोती, हीरा आदि सहु धन जे कहेवाय जे ते कारमुंछे, हे जीत्र तेमां तुं शुं ममता धारण करेछे ? जेनो संयोग तेनो अवश्य वियोग थवानोछे, पूर्वोक्त पुद्गलनो दृष्टा अने सुख दुःखनो ज्ञाता आत्मा देहरूप पुनलमां वस्योछे, अनंतगुणनो धणी आत्माछे, पांच प्रकारना शरीरथी आत्मा भिन्नछे, पर परिणतिमां लीन थलो चेतन व्यवहारथी कर्मनो कर्त्ता जाणवो.
आत्माना असंख्याता प्रदेशछे, प्रत्येक प्रदेशे अनंतु ज्ञान श्रॉ जिनवरे कछे, आत्मामां अनंत धर्मनी अस्तिता रहीछे तेमज आत्मामां अनंत धर्मनी नास्तिता रहीछे, अस्ति अने नास्ति धर्म समये समये आत्मामां बतेंछे, सत्ताए संसारी जीवोना प्रदेश निfa सिद्ध समान जाणवा अने ते समता रसनो भंडारछे, शुद्धन यथी स्त्रज्ञानादिक गुणनो कर्त्ता आत्मा जाणवो.
आत्माना असंख्यात प्रदेशमां रमतां असंख्य देशरूप आत्मा पोते पोताना स्त्ररूपे स्थिर थतां अने शत्रु मित्रपर समपणुं ते रूप समता साये रमतां क्षणे क्षणे अनंत अनंतगणुं सुख थायछे, आत्म स्वरूपनो स्ववीर्यध्याने उद्योत थतां परपरदेशनी ममता नष्ट यइ अने जाण्युं के - पुद्गलनी जाति माराथी भिन्नछे, अने हुं तेथी भिन्नहुँ, तो मारे पुद्गल जातिथी शो लाभ ? अने तेनो संग केम करवो जोइए ? अरेरे हूं अनादि कालथी तेनी संगतिथी खिन्न थयो,
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