________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
NAAM
(...)
मात्मज्ञान महता. वळी पुद्गलने शत्रु तरीके छतां मित्र तरीके मानी राग द्वेषना योगे विचित्र देहो ग्रहण की.
हवे आत्मा अने पुद्गल स्वरूप कर्मनो परस्पर कोना जेवो संयोग थयो ते कहेछे क्षीर नीरवत् दुग्ध अने जलना संयोगनी पेठे.
जे देखायछे ते पुद्गलद्रव्य हे चेतन तारुं नथी अने तुं तेनो नथी तेम उतां तुं केम तेमा मारापणानी बुद्धि धारण करछे, ज्यां सुधी चेतननी अबळी परिणतिछे त्यां सुधी संसार जाणवो, सबळी परिणति थतां कर्मनो क्षय क्षणमां थायछे, अने आत्मा शुद्ध निरंजन परमात्मपद प्राप्ति करेछे.
पुद्गलर्नु भोजन तरीके तथा पुद्गल पाणी तरीके खान पान करवं, तथा वस्र तरीके पहेरवू, पण पुद्गल जाणवू, स्थान, मासादरूप पुद्गलद्रव्य जाणवू. फोगट आत्माए पुद्गलमां वसी सुखनी सहेल भ्रांतिथी मानी. - हवे हुं पुद्गल द्रव्यमां केम राची माची रमुं ? तेनी संगतिथी मारी खराब अवस्था थइ, मारा अनंत गुणोनो पुद्गलद्रव्य घातकछे, माटे ते मारो मित्र नथी, कारण के मारा करतां तेनो अवळो स्वभावछे, मारो चेतना गुणछे तो तेनो जड गुणछे, अरेरे तेनी संगतिथी आ संसारमा परिभ्रमण करतां विचित्र बनाव बन्या. .
" दुहा." चार गतिना चोकमां, लख चोराशी बजार, त्यां बहु जन्म मरण करी, पाम्यां दुःख अपार १०३ पुद्गल संगे राग छे, पुद्गल संगे रोग; रुचि अरुचि पुद्गले, पुद्गलनो छे शोग. १०४
For Private And Personal Use Only