________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
पात्मज्ञान महासा.
पृथ्वी आदिक रूपे स्थित उपवन, गिरि, वख दि, गुजरात, पंजाब, इंग्लांड, युरोप, अमेरिकादि देशोमां मारापणानी बुद्धिथी राची माची तल्लीन बनी तेमां म्हालतां चेतन मार्यो जायछे, देश, गृह, धनादिकां मारापणानी बुद्धि धरतो मृत्यु पामी पुनः पुनः तद्गत वासना योगे जन्म धारण करी आधि व्याधि उपाधिना दुःखो पामेछे. हे चेतन शुं तृष्णा जाळमा फसायछे ? स्वभावाभावरूप अज्ञानतमः राशिमां विवेक नयन शून्यात्मा अत्र तत्र ऐहिक सुखनी भ्रान्तिए भ्रमण करतो, मनोराज्यनी संकल्प विकल्प श्रे. णिए चढयो छतो धूम्र वृन्द ग्रहण पुरुषवत् क्षणिक तुच्छ सर्वदा जड पृथ्वीने पोतानी मानी तदर्थे सहस्रशः जीव घातक बनी शोफापुरुषवत् स्वमहत्वतामा अन्य भव्यात्माओने पर्वतारोहण पुरुष दृष्टिवत् लघु गणी पारमार्थिक तत्त्व शून्यात्मा क्षणिक तुच्छ स्वाथमा राची परवस्तुमां ममतानो दृढ भाव संकल्पी रात्री दिवस तिल. पीलक यंत्र वृषभवत् असदाचरणोमा स्वकाल अज्ञानी पशुवत् निगंमेछे, पोतानाथी अत्यंत भिन्न पृथ्वी कोइनी थइ नथी, अने थवानी नथी मारी मारी मानवी ए केवल भ्रांतिछे, लक्ष उपायो करतां पण आकाश हाथमा झाली शकातुं नथी. तेम कोटि उपायो करतां पण पृथ्वी देश, घरबार पोताना थवानां नथी, देश, घरने जीव मूकी परभवमां चाल्यो जायछे, जे घर हाट म्हेल बंधावतां रक्षण करतां चेतने जरा पण शांति लीधी नहीं, ते घर हाट मूकी मरण समये जीव टगमग जोतो जीववानी सहस्रशः आशाओ करतो पण परभवमां चाल्यो जायछे, साथे कोइ पण वस्तु आवती नथी, ज्यां जे वस्तु हती ते त्यांने त्यां रही, अनंता भव कर्या पण कोइ बस्तु साथे आवी नहीं, तो आ भवमां तुं कइ वस्तु पोतानी साथे लइ जइश ? हा अलबत कोइ पण वस्त पोतानी साये आवनार
For Private And Personal Use Only