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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (९२ ) भास्मधर्म महत्ता. ~nrmmmmmmm पण चउद राजलोक व्यापीछे, आकाशास्तिकाय लोकालोक व्यापी छे. अशुद्ध परिगति योगे आत्मा पुद्गलास्तिकायना स्कंधोने ज्ञानावरणीयादि अष्टविधकर्मराशिरूप बनावी ग्रहण करी संसारमा परिभ्रमण करेछे. ___आत्मा शुद्धस्वरूप जोतां अरूपीछे, छतां रूपी एवा कर्मथी आत्माना अनंतगुणोनुं आच्छादन थायछे, आत्माना एकेक प्रदेशे अनंति कर्मवर्गणाओ लागीछे, किंतु आत्माना आठ रूचक प्रदेशे कोइ कर्म लागतुं नथी ते आठ रूचक प्रदेश सिद्ध समान सदाकाल निर्मल अनादि कालनाछे, ए आठ रूचक प्रदेशे पण जो कर्म लागे तो जीवनुं जीवखपणुं चाल्यु जाय. रूचक प्रदेशनो एवो स्वभावछे के तेने कोइ कर्म लागी शके नहीं, जेम जेम एकेंद्रियादिक भवनुं उल्लंघन करी उच्च गतिमा आवेळे तेम तेम तरतमयोगे सामान्यतः मतिज्ञान श्रुतज्ञाननी प्राप्ति थाय छे. शिष्यप्रश्न-आत्माना असंख्यात प्रदेशी शी रीते कहेवाय ? असं ख्यात प्रदेश कहेवाथी आत्माना असंख्यात भाग थया त्यारे आत्माना खंड थया अने अखंड आत्मा कहेवाशे नहिं माटे आत्माना असंख्यात प्रदेशो कहेवा ते शीरीते= सद्गुरु-आत्मा असंख्यातप्रदेश मळी कहेवायछे, असंख्यात प्रदेश कहेता आत्माना असंख्याता भाग थइ शकता नथी. कारणके प्रदेशो एक एकथी जुदा पडता नथी, प्रदेशो बाळ्या वळता नथी, छेद्या छेदाता नथी, हण्या हणाता नथी. केवली केवली समुद्घात करे त्यारे आत्माना प्रदेशो लोक प्रमाण विस्तारेछे छतां पण प्रदेशो एकमेकनी साये नित्य संबंधयी संबंधितछे. तेथी असंख्यात प्रदेशे मळी आत्मा कहेवामां कोइ जातनुं दूषण नथी आंवतुं, आत्माना प्रदेशो अरूपीछे, तेथी For Private And Personal Use Only
SR No.008627
Book TitleParmatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1910
Total Pages432
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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