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परमात्मदर्शन,
असंख्य प्रदेशात्मक आत्मा पण अरूपो कहेवायछे. आत्माना खंड कोइनाथी पाडी शकाता नथी, अने कोइ काले खंड थता नथी. माटे अखंड आत्मा कहेवाय छे, असंख्यातप्रदेशो कल्पना मात्र नथी पण ते सत्यछे. कल्पना मात्र कहेवामा प्रत्यक्ष प्रमाण नथी, अनुमान प्रमाण नथी, उपमान प्रमाण पण नथी. अने आगम प्रमाणमां तो आप्तमुख्य श्री सर्वज्ञ वाक्य प्रमाण कहेवाय छे-श्री सर्वज्ञ भगवंते कझुछे के-लोगागासतुल्लाअषपएसा माटे लोकाकाशना जेटला आत्माना प्रदेश के एम सत्य
श्रद्धा करवी. प्रश्न-कोइ एक गिरोलीनी पुंछडी कपाइ जइ त्यारे एक तरफ पुंछडी
कूदेछे. उछळेछे, अने एक तरफ धड उछळेछे त्यारे जीव
बेमां समजवो के एकां ? ऊत्तर-पुंछडी अने धडमां एम बेमा आत्माना असंख्य
प्रदेशो हेोवाथी मां अपेक्षाए जीव कहेवाय छे. केटलाक प्रदेशो पुंछडीना भागमा रहेला होयछे तेथी ते हाले छे पग धडना भागमां ते सर्व प्रदेशो भळी जायछे त्यारे पुंछडी हालती नथी. ते समये धडमां जीव कहेवायछे ए उपरथी सिद्ध थायछे के आत्माना प्रदेशोथी एवो बनाव बने छे, सूक्ष्मबुद्धि अने गुरुगमथी आ दृष्टान्त मनन करवू. ज्ञानावरणीय कर्म सर्व जीवने एक सरखं होय तो स जीव एक सरखा ज्ञानवाळा होवा जोइए पग ज्ञान एक सरखं होतुं नथी माटे ज्ञान, प्रतिबंधक ज्ञानावरणीय कर्म जीव जीव प्रत्ये भिन्न भिन्न नाना प्रकारचं होयछे. तेथी नेना क्षयोपशम भावे पक जीवन भिन्न भिन्न प्रकारचें ज्ञान थायछे. उपाधि भेदे ज्ञानाननीयाम पंचविधछे, ज्ञानावरणीयादि
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