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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दाय की नींव डाली । हम नहीं जानते हैं कि वह नई सम्प्रदाय कौन सी है । मालूम होता है कि यह बात लाला साहब ने किसी अंगरेज लेखकके आधार पर लिखी है। श्री महा. वीर स्वामी तो उन्हीं प्राचीन जैन सिद्धान्तों के प्रचारक थे जी आदि तीर्थंकर के समय से चले आए थे। इसमें कोई सन्देह नहीं कि आप उन सिद्धान्तों के अत्यंत भव्य, प्रभावशाली और अद्वितीय उपदेशक, प्रचारक और संस्थापक थे। आपने उन सिद्धांतों को बड़ी खूबी से समझाया है। पर आपने ऐसी बात कोई नहीं कही है जो उन सिद्धांतों के प्रतिकूल हो। आगे चलकर योग्य ग्रन्थकर्ता ने लिखा है कि जैन धर्म की शिक्षा बौद्ध धर्म की शिक्षा से मिलती है। यदि देखा जाय तो मूल तत्व तो सभी धर्मों के एक हैं, पर प्रत्येक धर्म में कुछ न कुछ ऐसी विशेषता होती है कि उसके कारण वह किसी दूसरे धर्म से नहीं मिलता है । बौद्ध लोग आत्मा या जीव को नहीं मानते है. जैन धर्मावलम्बी आत्मा के आधार पर सब धार्मिक सिद्धान्तों की भित्ति रखते हैं । जैन २४ तीर्थंकरों को मानते हैं लेकिन बौद्ध अपने धर्म का निकास महात्मा बुद्ध से ही समझते हैं जो महावीरस्वामीके समकालीन थे । जैनो की फिलासफी, यानी उनके दार्शनिक सिद्धांत बौद्ध दार्शनिक सिद्धांतों से नहीं मिलते हैं। इनके साधु और श्रावकों के धर्म कर्म बौद्ध साधु और गृहस्थों के धर्म कर्मों से सर्वथा भिन्न हैं। बौद्ध मांसाहारी हैं और जैनों में कोई ऐसा नहीं है जो मांस खाता हो। इनके आचार विचार शुद्ध हैं। अहिंसा धर्म के सच्चे अनुयायी यही हैं बौद्ध नहीं। लाला साहबने लिखा है कि जैन स्पष्ट रूप से ईश्वर के अस्तित्व से इन्कार करते हैं और इनके मत में अच्छे से अच्छा श्रेष्ठ से श्रेष्ठ और त्यागी से त्यागी मनुष्य ही परमेश्वर है । यह किसी अंगरेज के लिखे वाक्यों का अनुवाद For Private And Personal Use Only
SR No.008619
Book TitleLala Lajpatray Ane Jain Dharma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1924
Total Pages115
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & History
File Size7 MB
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