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जिन बातों को श्रीमान् लाला साहब ने जैनधर्म के संबंध में लिखा है और जिन्हें जैन धर्मावलम्बी आक्षेप समझते हैं उनमें से कुछ ये हैं:
आपने लिखा है कि जैन यह मानते हैं कि जैन धर्म के मूल प्रवर्तक श्री पारसनाथ थे जो भगवान बुद्ध से लगभग ढाई सौ वर्ष पहिले हुये । इस बात को न तो जैन ही मानते हैं और न अजैन विद्वान् ही, जिन्होंने जैनधर्म के विषय में कुछ भी पढ़ा है। सभी लोग जानते हैं कि जैनधर्म के आदि तीर्थंकर श्री ऋषभदेव स्वामी हैं, जिनका काल इतिहास परिधि से कहीं परे है । इनका वर्णन सनातन धर्मी हिन्दुओं के श्रीमद्भागवत पुराण में भी है । ऐतिहासिक गवेषण से .मालूम हुआ है कि उत्पत्ति का कोई काल निश्चित नहीं है । प्राचीन से प्राचीन ग्रन्थों में जैन धर्म का हवाला मिलता है। संसार में ऋग्वेद से पुरानी पुस्तक कोई नहीं है। इस धर्म पुस्तक में भी ऋषभदेवजी का नाम आया है और कुछ शब्द ऐसे भी मिलते हैं जिनसे जैन धर्म का संकेत होता है । श्री पार्श्वनाथ जी जैनों के २३ वे तीर्थकर हैं जिनका समय ईसा से १२०० वर्ष पहिले का बताया गया है न कि बुद्ध से २५० वर्ष पहिले का । सम्भव है किसी २ विद्वान् का यह भी मत हो । जब श्री पार्श्वनाथ जी २३ वें तीर्थकर थे और इनका समय ईसासे १२०० वर्ष पूर्व का है तो पाठक स्वयं विचार कर सकते हैं कि श्री ऋषभदेवजी का कितना प्राचीन काल होगा । जैन धर्म सिद्धान्तों की अवछिन्न धारा इन्हीं महात्मा के समय से बहती रही है । कोई समय ऐसा नहीं है जिसमें इसका अस्तित्व न हो। श्री महावीर स्वामी जैन धर्म के अन्तिम तीर्थकर और प्रवर्तक । इनका . जन्म काल ईसा से ५८२ वर्ष पहिले का बताया जाता है लेकिन वीर संवत् जो इनके नाम से प्रचलित है ईसा से ५२५ वर्ष पहिले को है । इस समय वीर संवत् २४४९ है।
आपने लिखा है कि महावीर स्वामी ने एक नई सम्प्र.
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