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लाला लाजपतराय और जैन-धर्म ।
श्रीमान् लाला लाजपतरायजी ने हाल ही में भारतवर्ष का इतिहास" लिखकर प्रकाशित किया है। उसमें जैनधर्म के संबंध में लिखते हुए आपने कुछ ऐसे वाक्य भी लिख लिये हैं जो सर्वथा भ्रमपूर्ण, अनुचित, और वर्तमान परिस्थिति के प्रतिकूल हैं। उनके प्रतिवादरूपमें हो अजैन विद्वानों की सम्मतियां इस प्रकार है:
१-श्रीमान् लाला कन्नोमलजी एम. ए. सेशन जज धौलपुर स्टेट, आगरे के 'जैनपथ प्रदर्शक ' ता. २२ जुलाई १९२३ के अंक में इस प्रकार लिखते हैं:
ला० लाजपतराय लिखित-भारतवर्ष के इतिहास में जो अभी प्रकाशित हुआ है, जैनधर्म के विषय में कुछ ऐसे वाक्य लिखे गये हैं जिन से जैन धर्मावलम्बियों के दिले पर चोट लगी है । अच्छा होता यदि ला० साहब इन वाक्यों को नहीं लिखते । वह इस समय अपने अलौकिक त्याग और देश सेवा उत्साह के कारण समस्त भारतवासियों के हृदय मन्दिर में उच्चस्थानासीन हैं । हम भली भांति जानते हैं कि लाला लाजपतराय जैसे उच्च देश प्रेमी, सत्यवती, अनुभवी नीतिज्ञ विद्वान् , जान कर कोई ऐसी बात नहीं कहें और लिखेंगे जिससे दूसरों का दिल दुखे । जो कुछ आपने लिखा है वह निष्कपटता और सरल हृदयतामे ही लिखा है। किसी धर्म और सम्प्रदाय पर पक्षपात के तिरस्कृत भावों से आक्षेप करना उनका काम नहीं है। हम कह सकते हैं कि निर्भीक पुरुष जिनका एक मात्र आलम्ब सत्य है, कभीर अपनी निजी सम्मति. प्रकट करने में ऐसी बातें कह डालते हैं जिनसे दूसरों को दुःख होता है, और इन लोगों को इससे सान्त्वना नहीं होती है कि इन हृदयाद्गारो में द्वेष, पक्षपात और नीच भावों की कुछ भी बू नहीं है ।
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