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परमात्मा के पास जाना चाहता हूँ, मुझे जीवन जीने का कोई मोह नहीं है और मरने का कोई डर नहीं है ।' - यही आचार्य श्री के अंतिम उद्गार थे ।
आपका पावन-पवित्र जीवन सबके लिए प्रेरणा का स्रोत था । हर व्यक्ति के लिए आप एक आदर्श थे ।
आज पूज्य आचार्य श्री अपने बोच नहीं है, परन्तु उनकी उज्ज्वल जीवन-साधना हर समय लोगों के स्मृति पट पर अमर रहेगी । आप शांति एव प्रसन्नता की मूर्ति एवं हम सब के राहर थे ।
परमात्मा के प्रति श्रद्धा तो आपमें कूट-कूट कर भरी हुई थी । आपके रोम-रोम में जिन शासन और परमात्मा का नाम, प्राणी मात्र के प्रति मैत्री भावना की अपूर्व गूज थी । आप अपना अधिकतर समय परमात्मा के स्मरण एवं चिन्तन-मनन में व्यतीत करते थे । कभी आपको व्यर्थ में समय व्यतीत करते नहीं देखा गया । जिस प्रकार से समय का सुन्दर उपयोग आचार्य श्री ने अपने जीवन में किया, शायद ही वैसा इस काल में कोई कर सकेगा। आचार्य श्री सरल-सौम्य स्वभाव की एक जीवित-जाग्रत प्रतिमा ।।
आचार्यश्री का जीवन एवं निर्मल चारित्र अपने आप में अनूठा, अनोखा, अद्वितीय, अनुपम एवं एक आदर्श था, जो युगों-युगों तक श्रद्धालुओं के जीवन-पथ को आलोकित कर, उन्हें उज्ज्वल जीवन जीने की प्रेरणा देता रहेगा ।
अंत में पूज्य आचार्यश्री के परम-पावन चरण-कमलों में मारभरी कोटिशः वन्दना ........ !