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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ६८ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सचित्र जैन कथासागर भाग (३३) किसी का बुरा मत सोचो अर्थात् धनश्री की कथा २ (१) आधोरण नगर में नित्य एक योगी भिक्षा के लिए घूमता और कहता, 'जो जैसा करता है वह वैसा प्राप्त करता है । ' उसी नगर में एक धन सेठ और उसकी पत्नी धनश्री निवास करते थे । उनके दो पुत्र थे- एक सात वर्ष का और दूसरा पाँच वर्ष का । यों तो धन सेठ एवं धनश्री सब प्रकार से सुखी थे । एक बार योगी के 'जो जैसा करेगा वह वैसा पायेगा' शब्द सुनकर धनश्री के मन में विचार आया कि यह योगी कह रहा है उसकी सत्य-असत्य की परीक्षा करनी चाहिये । उसने योगी को विष के लड्डू भिक्षा में दे दिये । योगी ने 'अलख निरंजन' कह कर वे दो लड्डू झोली में डाल दिये । तत्पश्चात् अन्य भिक्षा भी घर-घर माँग कर वह नगर के बाहर आया । योगी ने भिक्षा का पात्र बाहर निकाला तो भिक्षा आवश्यकता से अधिक आई थी । जब योगी खाने के लिए बैठा तब दैवयोग से घूमते-घूमते धनश्री के दोनों पुत्र वहाँ आये और योगी की भिक्षा की ओर ताकते रहे । वालकों को लड्डु सदा प्रिय होते हैं, ' जैसी करनी वैसी भरनी' उक्ति की परीक्षा धनश्री को ही आघातक साबित हुई. योगी को दिए गए जहर मिश्रित दोनो ही लड्डु धनश्री के पुत्रों ने ग्रहण कर मौत को आमंत्रित किया. For Private And Personal Use Only
SR No.008588
Book TitleJain Katha Sagar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShubhranjanashreeji
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages143
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size9 MB
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