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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir क्षमा की प्रतिमूर्ति स्कन्दकसूरि का चरित्र ___ इतने में वनपालक ने आकर राजा को वधाई दी कि 'भगवन्! पाँचसौ शिष्यों के साथ स्कन्दकसूरि का पदार्पण हुआ है।' यह सुनकर राजा, रानी और सम्पूर्ण नगर आचार्य भगवन् के दर्शन के लिए उमड़ पड़ा । सूरिवर ने संसार की असारता समझाई एवं संसार की सम्पत्ति को धुंए की मुठ्ठी जैसी बताया । पुरन्दरयशा को अपार हर्ष हुआ। वह मन ही मन बोली - ‘बंधु राजराजेश्वर बनते तो इस समय महामुनीश्वर बन कर जो आत्मिक वैभव का अनुभव कर रहे हैं वह थोड़े ही अनुभव कर पाते?' सूरीश्वर की देशना में अनेक भव्य आत्माओं ने अनेक प्रकार के छोटे-बड़े व्रत लिये और जैन धर्म की भूरि-भूरि प्रशंसा की। राजा ने विचार-मग्न पालक को पूछा, 'पालक! सम्पूर्ण नगर में सभी के आनन्द का पार नहीं है और तुम क्यों विचार मग्न हो?' पालक बोला, 'महाराज! लोगों की तो भेड़ चाल है। उन्हें सत्य-असत्य की थोड़े ही खबर है कि इसमें तत्त्व क्या है?' 'पाँचसौ शिष्यों के साथ सूरि के आगमन में तुम्हें कोई कुशंका प्रतीत होती है?' राजा ने आश्चर्य एवं अन्यमनस्कता से कहा। ‘राजन्! आप भद्र हैं, आप सबको शुद्ध एवं सरल ही मानते हैं। मुझे तो आपके राज्य की अपार चिन्ता रहती है, अतः मैंने इसकी पूर्णतः जाँच की तो पता लगा कि स्कन्दक ने दीक्षा ग्रहण तो कर ली, परन्तु वह उसका पालन नहीं कर सका । वह संयम से तंग आ गया है । उसने प्रारम्भ में तो वेष उतार कर पुनः घर जाने का विचार किया था परन्तु लज्जावश वह नहीं गया और यहाँ पाँचसौ सैनिकों को लेकर आया है।' _ 'स्कन्दसूरि के साथ पाँच सौ मुनि सैनिक हैं, यह तुझे कैसे ज्ञात हुआ? राजा ने शीघ्रता से पूछा। ___ 'महाराज! इसका दार्शनिक प्रमाण यह है कि जहाँ वे ठहरे हैं वहाँ भूमि में उन्होंने अपना शस्त्र-भण्डार छिपाया है। आपको यदि मेरी बात पर विश्वास न हो तो गुप्तचरों से आप जाँच करा लें। राजा को यह बात विश्वास करने योग्य प्रतीत नहीं हुई, फिर भी उसने गुप्तचरों को यह कार्य सौंप दिया। उन्होंने गुप्त रूप से जाँच की और रात्रि में आकर राजा को कहा, 'महाराज! मुनियों के आवास के नीचे बड़े शस्त्र-भण्डार हैं; देखिये ये रहे कुछ नमूने।' For Private And Personal Use Only
SR No.008588
Book TitleJain Katha Sagar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShubhranjanashreeji
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages143
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size9 MB
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