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________________ www.kobatirth.org माता-पिता का वध अर्थात् पाँचवां एवं छठा भव Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra (३८) माता-पिता का वध अर्थात् पाँचवां एवं छठा भव Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१) राजन्! अब आप मेरा पाँचवा एवं छठा भव सुनो। माता ग्रहा के भव में से बकरी हुई और मैं उसके ही गर्भ से पुत्र के रूप में उत्पन्न हुआ । जन्म होने के पश्चात् कुछ ही समय में हृष्ट-पुष्ट बकरा वन गया । पांचवाँ भव : यशोधर बकरे के भव में, यशोधरा बकरी के रूप में. १०१ पशुओं में विवेक तो होता नहीं । विवेक हीन युवा बकरे के रूप में मैं अपनी माता के साथ ही विषय भोग करने लगा। मैं माता के साथ विषय भोग कर विश्राम ले रहा था इतने में समूह के अधिपति ने वाण मार कर मुझे मार डाला । कर्म- संयोग से वहाँ से मर कर मैं अपने ही वीर्य से माता की कुक्षि में पुनः बकरे के रूप में उत्पन्न हुआ । इस भव में मेरी माता वह पत्नी वनी और पुनः माता बन गई । एक बार जंगल में घूमती हुई इस वकरी पर राजा गुणधर की दृष्टि पड़ी। राजा For Private And Personal Use Only छठा भव : पुनः 'यशोधर बकरे के रूप में रोम-रोम में कुष्ठ रोग से ग्रसित नयनावलि को निरखता हुआ.
SR No.008588
Book TitleJain Katha Sagar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShubhranjanashreeji
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages143
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size9 MB
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