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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इन्द्रभूति गौतम ईर्ष्यावश महावीर देव से वाद करके प्रभु को पराजित करने हेतु गए. वहाँ उनकी अपार ऋद्धि और शोभा देखकर वे हतप्रभ से हो उठे. परंतु दिग्गज पंडित के रूप में उन्होंने प्रभु से वाद करने की ठान ही ली. प्रभु से साक्षात्कार होने पर वे प्रभु के स्नेह युक्त मीठे वचनों से प्रभावित हुए. प्रभु महावीरस्वामी ने भी उन्हें योग्य समझ कर उनके संशयों को युक्ति प्रयुक्तियों से निरस्त किया व वेदों के रहस्यों को अनेकांत दृष्टि से समझाया. इन्द्रभूति गौतम के मिथ्यात्व एवं सब संशय दूर हो गए और सम्यक्त्व प्रगट हुआ. वैराग्य वासित देखकर भगवान ने उन्हें दीक्षा देकर अपने प्रथम शिष्य और प्रथम गणधर के महान पद पर आरूढ़ किया. उनका चरित्र बड़ा अद्भुत व महिमावन्त है. शास्त्रों में जगह-जगह हे गोयम! संबोधन से भगवान ने तत्त्व का उपदेश दिया है. ___ गुरू गौतमस्वामी के जीवन में एक अद्भुत चमत्कारी प्रसंग घटित हुआ, जिससे हमें उनकी आत्म लब्धियों का किंचित परिचय मिलता है. भगवान की देशना में उन्होंने सुना कि स्व-शक्ति से जो आत्मा अष्टापद पर्वत तीर्थ की यात्रा करती है और वहाँ रात्रि वास करती है, वह उसी भव में मोक्षगामी बनती है. यह सुनते ही लब्धिवन्त गौतमस्वामीजी भगवान से अनुज्ञा लेकर चारण लब्धि (आकाश गमन की लब्धि) से थोड़े ही क्षणों में अष्टापद की तलहटी में पहुँच गए. तलहटी में पहले से ही अनेक तापस ऋषि मुनि मोक्षप्राप्ति हेतु कठोर तप करके तीर्थयात्रा का प्रयास कर रहे थे. उन तापस मुनियों ने देखा कि हम जैसे तप करके दुबले शरीर धारी भी उपर नहीं पहुंच पा रहे है तो यह हृष्ट पुष्ट विशालकाय साधु कैसे जाएगा? वे सब सोच रहे थे कि गौतमस्वामी लब्धि बल से सूर्य की किरणों का अवलंबन कर अष्टापद १३ For Private And Personal Use Only
SR No.008568
Book TitleGautam Nam Japo Nishdish
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharnendrasagar
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2001
Total Pages124
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size5 MB
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