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भी अर्थान्तर कर देती है. इसी प्रकार मुनिसुन्दरसूरि रचित गौतमगणधरस्तोत्र (जयसिरिविलासभवणं...) में गाथा ६ में उत्तरपाद में सूरिगण भगव वसियं पाठ कई जगह छपा है, जिसका अर्थ मेल होता ही नहीं है. यहाँ पर हमने सूरिगणझाणविसय... पाठ उचित तय कर परिशोधित किया गया है. ___ इसी तरह की अशुद्धियाँ संस्कृत-प्राकृतादि भाषा निबद्ध अनेक स्तोत्रादि में मिलती हैं. पाठकों को पठन, पाठन, गुणन में सुविधा हो और शुद्ध पाठ मिले एतदर्थ पूरा प्रयास किया गया है.
जिन कर्ताओं के नाम वैकल्पिक मिले हैं वहाँ दूसरा नाम भी साथ ही दे दिया गया है.
जैन शासन में गौतम गुरु के नाम से आबालवृद्ध सभी परिचित है फिर भी हम उनके वृत्तांत को संक्षेप में देना उचित समझते है. गुरु गौतमस्वामी के पूर्व के पाँच भवों का वृत्तांत मिलता है. प्रथम भव में वे मंगल श्रेष्ठि, दूसरे भव में मत्स्य, तीसरे भव में ज्योतिर्माली देव और चौथे भव में सुवेग राजा के पुत्र वेगवान नाम से हुए. चौथे भव की आयु पूर्ण कर देव हुए. देवायु पूर्ण कर वेगवान का जीव इन्द्रभूति बना.
प्रभु श्री महावीर देव के प्रथम गणधर श्री गौतमस्वामी के नाम से ही लब्धियों का अनायास ही स्मरण हो जाता है. उनका जन्म राजा विक्रम के ५५० वर्ष पूर्व गुब्बर गाँव में गौतम गोत्रीय उच्च ब्राह्मण कुल में हुआ था. माता का नाम पृथ्वी और पिता का नाम वसुभूति था. तत्कालीन विद्वानों में वे उपाध्याय पदवी से अलंकृत और सैकड़ों शिष्यों के गुरु थे. भगवान श्री महावीर की देशना के श्रवण निमित्त जब देववृंद समवसरण में आ रहे थे तब पास ही में यज्ञ कर रहे
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