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(१०८) परमभाव ग्राहक प्रभु, तेम सामान्य विशेष; ज्ञेय अनन्तनुं तोल करे प्रभु ! ताहरो. क्षायिक एक प्रदेश.
०३ स्थिरता क्षायिकभावथी, मुखथी कही नहि जाय; अनन्तगुण निज कार्य करे लह। शक्तिने, उत्पत्ति-व्यय पाय.
ऋ०४ गुण अनन्तनी ध्रुवता, द्रव्यपणे जे अनादि; गुणनी शुद्धि अपेक्षी पर्याये कर, भंगनी स्थिति छ सादि. क०५ सादि अनंति मुक्तिमां, सुख विलसोबो अनंत; सुख ज्ञेयादिक ज्ञानमा ज्ञाता जगगुरु, ज्ञान अनंत वहंत.
०६ रागद्वेष-युगल हणो, थइया जग महादेव,
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