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( १०७ )
जिनेश्वरस्तवन चतुर्विंशतिका.
(२)
१ ऋषनदेवस्तवन. (प्रथम जिनेश्वर प्रणमोए--ए राग.) ऋषभजिनेश्वर ! वंदना, होशो वारंवार; पुरुषोत्तम नगवान निराकार संत छो, गुणपर्यायआधार. ए टेक. उत्पत्ति-व्यय ध्रुवता, एक समयमां हि जोय; पर्यायाथिकनयथी व्यय-उत्पत्ति छ, द्रव्यथकी ध्रुव होय.
ऋ.? सत् करतां सामर्थ्यना, होय पर्याय अनन्त; अगुरुलघुनो शक्ति ते तेहमां जाणीए, अनन्त शक्ति स्वतंत्र.
ऋ०२
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