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(१०९) बुद्धिसागर अवसर पामी नक्तिथी, पामे अमृतमेव.
ऋ० ७ २ अजितनाथस्तवन. ( श्री संभव जिन ! ताहरेरे, अलख
अगोचर रूप-ए राग.) अजित जिनेश्वर सेवनारे, करतां पाप पलाय; जिनवर सेवो. सेवो सेवोरे, भविकजन : सेवो, प्रभु शिवसुखदायक मेवो, प्रभु सेव सिद्धि सुहाय. जिनवर. मिथ्या-मोह निवारीनेरे, क्षायिक-रत्न ग्रहाय; जिनवर. चरित्र-मोह हठावतारे, स्थिरता क्षायिक थाय. जिनवर. १ क्षपक-श्रेणि आरोहोनेरे, शुक्ल-ध्यानप्रयोग.
जिनवर.
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