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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आतम. २ भातमज्ञानसे समता पाकर, मश्गुल आतमध्याने ऐसा अवधूत प्रभु परमाने, आरोहे शिवस्थाने. नयष्टिए आतम सत्यकुं, सापेक्षाए जाने बुद्धिसागरातमरसकुं, चाखे निश्चय ज्ञाने. आतम०३ आतम!!! छोडदे मोहको यारी. सोरठ, आतम ! छोडदे मोहकी यारी, मोहकी यारीसे दुःख भारी; बहोत भरी है खुवारी........................आतम० जबतक मनमें मोह है तबतक, आंख रहत है विकारी अस्थिर मनतन रहत है वाचा, समजो चित्त विचारी. आतम० १ काल अनादि भवमां भटक्यो, अब दें भान्ति निवारी; आतमज्ञानसें आतम जागो, आग ही आपको व्हारी. आतम० २ समताभावमें निशदिन रहेना, दो आत्मखुमारी; समतासे मोड क्षणमें विनसे, मुक्ति मिलत है प्यारी. आतम० ३ आतम आपोआपकी यारी, कर उपयोग समारी; बुद्धिसागर शुदातमरस,प्रगटे अपरंपारी. आतम करदे आपकी यारी०४ आतम सत्य है तेरी फकोरी. सोरठ. आतम !!! सत्य है तेरी फकीरी, राग रु द्वेष नहि कच्छु चिता; भर दुःख नाह दिल्गारी........................आतमः मनकी त्यागग्रहणकी वृत्ति, नहि नहीं दीनता रु अमोरी; बुद्धिसागर प्रभु मस्ताना, आपोआप हजूरी. आतम० १ For Private And Personal Use Only
SR No.008545
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages198
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size9 MB
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