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सका धर्म हे न्यारा न्याराआशावरी.
सबका धर्म है न्यारा न्यारा, चिदानंदरूपी आतमका:
.सबका०
धर्म हे अगम अपारा.. मनका धर्म सो मनमें रहेता, तनका तनमें धाराः आत्मस्वभावे आत्मधर्म है, समजे नहि संसारा. सर्वद्रव्य निज धर्मकुं धरते, ऐसा ज्ञान विचारा; ज्ञानरु आनंद आत्मधर्म है, निज उपयोगे निहारा. आतम आपोआप धर्ममें, रहना मुक्ति पसारा; बुद्धिसागर शुद्धातमका, धर्म है अंतर प्यारा.
सबका० १
नहि मनवाणी काया पुद्गल, आतम हम अविनाशी; बुद्धिसागर ब्रह्मस्वरूपी, ज्ञानानन्द उजासी.
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सबका० २
आतम आपोआप प्रकाशी.
आशावरी.
आतम आपोआप प्रकाशी, नाहि गृही ओर नहि वनबासी; नाहि यति सन्न्यासी.....
. आतम०
नहि ब्रह्मचारी नहि व्यभिचारी, नाहीं फकीर उदासी;
नहीं व्रती वा नही अवती हम, नहीं भूखे अरु प्यासी. आतम० १
सबका० ३
नहीं गुरु वा नहि हम चेला, नहि हम स्पृद्दी वा निराशीः रागी न त्यागी न भोगी न योगी न, हर्ष न शोक विलासी आ० २
आतम० ३