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आतम!!! आतमकुं खुश करना.
आशावरी. आतम !! आतमकुं खुश करना, अन्यकी खुशामतमें गुलामी आपस्वभाव विचरना...........................आतम० रीझवना क्या अन्यजनोंकु, आपोआप रीझवना; परकी आशा दुःख निराशा, निज प्रभुताइ स्मरना. आतम!! १ मन इन्द्रियकुं खुश करनेसे, क्षण क्षण होता मरना; मोहगुलामी वडी हसमी, उससे है नहि तरना. आतम०२ जडसुख प्रभुताकी आशासें, परकुं नहि करगरना; शुद्धब्रह्ममस्तीमें रहकर, फकड होकर फरना. आतम०३ निज आतमकुं कोउ न उद्धरे, आपोआप उद्धरना; पुद्धिसागर स्वतंत्र आतम, चिदानंदपद वरना.
आतम०.४
आतम!!! परकुं क्या समजाना.
आशावरी. आतम! परकुं क्या समजाना, आपोआप समजकर रहेना; होना नहीं नादाना............................आतम० मानत है में परकुं बुझाया, अहंदृत्तिभ्रमखाना; भस्तिन्यता जिसकी है जैसी, ऐसा होता जाना. आतम०१ भाविभावसे निमित्त होना, पर उपदेशमें माना; ऐसा मान समजकर आतम !!! करना नहि अभिमाना. आतम० २ निज मन समजाया नाहि समजे, परको कैंसे बुजाना; जबतक आतमके वश नहि मन, तबतक नाटकरखाना. आतम. ३ आपोआपकुं समजाना है, होकर जगमें दिवाना; पुद्धिसागर परमप्रभुमें, रसिया है मस्ताना.
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