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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हमेरा पार न कोउ पाता. आशावरी. हमेरा पार न कोउ पाता, भिन्न भिन्न मतके सब लोको मतमतभेदसें ध्याता....................हमेरा० एक एक दृष्टिसें देखत, आपमते उजमाता; पर दर्शन मत खंडन करते, मोहे बनी मतमाता. हमेरा. १ सब दृष्टि भेगीकर देखे, अंशसें हमहि जनाता; दर्पनमें नहि विश्व प्रकाशत, दर्पनमें जग माता. हमेरा० २ आतमरूपमें जो कोउ आते, हमरूप होइ समाता; मन बुद्धि ममता मायामें, मूढजनो भरमाता. हमेरा० ३ गति हमेरी हमहि जाने, मोही खत्ता खाता; बुद्धिसागर अलख निरंजन, निजनिजकुं परखाता. हमेरा० ४ अब हम उतरगए भव पारा. आशावरी. अब हम उतर गए भव पारा, भव मुक्ति दोउ सम भासी, आनंद अपरंपारा............................अब. शुद्धातमका अनुभव पाया, साधने साध्य समारा; अपकीर्ति कीर्ति सम लागत, माया भ्रान्ति निवारा. अब०१ त्याग राग समभावी होते, त्रिगुणातीत पसारा; अवधूत मस्त भया हम आतम, मोह कालकुं मारा. अब० २ शुभ अशुभ परिणाम न जगमें, रहा न सारा नठारा; रागद्वेषकी भ्रांति निवारी, जग नाहि द्वेषी प्यारा, अब०३ मनमें सुख दुःख करत न विषयो, शुद्धस्वरूप हमारा; बुद्धिसागर मस्ताना दिल, जगमें है जग न्यारा. अब०४ For Private And Personal Use Only
SR No.008545
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages198
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size9 MB
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