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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आत्मद्रव्यने काल न खाय, द्रव्य न कोइ विणशी जाय; निज उपयोगे गुण पर्याय, प्रगटे आतम मुक्त सुहाय. १०८ आतम अमर अजर वर्ताय, निश्चयदृष्टि जाण्यो जाय; देहवियोग समय जब आय, आतम उपयोगे वर्ताय. १०९ आतम ते परब्रह्म छे, जाण्यो आपोआप; ज्ञानानंदे अनुभव्यो, टळ्या सर्व संताप. मृत्युविनाशक ग्रन्थ ए, भणे सुणे नरनार; मृत्युघातनो जयकरी, पामे शांति अपार. १११ अठयोत्तर गाथावडे, रच्यो ग्रन्थ सुखकार; आत्मिकशांति तुष्टिने, मंगल सुखदातार. ओगणिश अठयोत्तरतणी, माहवद पंचमी बेश; बुद्धिसागर आत्ममां, आनंद हर्ष हमेश. अँई ॐ महावीर शांतिः ३ ११२ आत्मानी शुद्ध परिणतिरूपस्त्री. राग. सोरठ. आतम परखो अपनी नारी, देहकुं नारी मानत भूले; दुःखी सब संसारी................ .....................आतम रूपरंगधारक जो नारी, देह चामडी धारी; उपजे विणसे दुःखकी क्यारी, जूठी है तस यारी. आतम० १ मनकी शुभाशुभ परिणति नारी, चतुर्गति दुःखकारी; शुद्धपरिणति नारी प्यारी, जान लें निजसें न न्यारी. आतग० २ ज्ञानानन्दस्वरूपी परिणति, मिलतां प्रभुता भारी; वर्ण गंधरस स्पर्श न जिसकुं, खेले खेल अपारी. आतम० ३ For Private And Personal Use Only
SR No.008545
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages198
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size9 MB
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