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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५ अज अविनाशी न मरे कबहु, एकस्वरूप जयकारी बुद्धिसागरशुद्ध परिणति, परब्रह्मपति नारी. आत्मकुटुंब. राग सोरठ, . आतम० आतम !! आत्म कुटुंबने देखो, मन माया जग कुटुंब छे जुड़; तेने दर उवेखो..... भक्तिमाता बोधपिता छे, कर्मयोग छे भाइ; उपासना के बहेनी नीति, जीवननी छे कमाइ . शुद्धपरिणति साची स्त्री छे, शुद्धस्वरूप सुहाइ; निजी भिन्न कदापि न थावे, पूर्णानन्द प्रदायी. सात्विक परिणति सासु साची, ध्यान ते ससरो पेखो; केवलज्ञान ते पुत्र पवित्र ज, प्रगटे निश्चय एको. असंख्य प्रदेशी साचु घर छे, टळे खरे नहीं क्यारे; अंतरदृष्टि मगटे ज्यारे, कुटुंब प्रगटतुं त्यारे . आत्मकुटुंबनी साथे रमवु, शिक्षा छे सुखकारी; बुद्धिसागर आनंद मंगल, आत्मकुटुंब बलिहारी. .......... For Private And Personal Use Only आतम० ४ आतम० १ पंथवाडा. निशदिन जोउं रहारी वाटडी. ए राग. मारु. मतपंथ दर्शनवाडामां, पशु यै न बंधाशो; रागद्वेषनी वृत्तिने, पोषी दुःखी याशो. मतपंथ दर्शन भेदथी, धर्म युद्धो मगटे; धर्मशास्त्र मतभेदयी, शुद्धबुद्धि विघटे, आतम० २ आतम० ३ आतम० ४ आतम० ५ मत० १ मत० २
SR No.008545
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages198
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size9 MB
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