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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जे देहना ते देहीयो ने आत्मना ते ज्ञानियो, जे आत्मना छे ज्ञानियो ते पामता सुख वानियो, ओळखाण नामने देहथी ओळखाण साचुं नहीं कदी, जे नामरूपे ओळखो ते ९ नहीं माया बधी आवो अमारी पाछळे आतम म्हने दिल पारखी, सात्विक पराभक्तिवळे थाशे दशा निज सारिखी. आतम अमर निज जाणवो तन मन क्षणिक छे जाणवू, सहुमां अने सहु भिन्न एबुं ब्रह्म दिलमां आणवू; आ विश्वनो छ बाग तेनो स्वामी आतम जाणवो, जो मोहथी मुंझाय ना तो शुद्धब्रह्म पिछाणवो. निर्मोहथी जो इन्द्रियो पांचे प्रवर्ते निजगुणे, जो मोहवण मन चिंतवे तो निर्बध आतम सद्गुणे; विषयो न बांधे आत्मने उपयोगथी आतम जगे, परब्रह्ममां प्रीति परा आनंद व्यापे रगरगे.. जे मन अने विषयोविना आनंद रस प्रगटे खरो, ते ब्रह्मरस घट जाणवो पाम्यो ज भवजलधि तों; आतमरसे रसिया थया बंधाय नहि विषयोविषे, सर्वे करे न्यारा रहे आसक्तिवण निर्मल दिसे. चोपाइ. शरीर पुद्गलमां आकाश, रघु छतां नहि लेपज खास ज्ञानीने पुद्गलनो योग, तेम ज तेमां होय अयोग. शरीर देवल आतम भूप, अनंत ज्योते झलके रूप; प्रधान उपयोग ज तस जाण, तप जप संयम सैन्य वखाणं. ९३ देह देवले आतमराज, आतमज्ञाने करतो राज्य; पूर्णानन्दनी क्षण क्षण ल्हेर, समभावे नहि रागने मेर. ९४ For Private And Personal Use Only
SR No.008545
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages198
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size9 MB
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