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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सात्त्विक भक्ति पुखिने, सेवाथकी आगळ वहो; परब्रह्मनो अनुभव बो, आनंदरूपे थई रहो. जडमां अने मनमां रही जे, ग्रहण त्यागनी कल्पना; ए ग्रहण त्यागनी एत्ति वण, रहेशे नहीं किंचित् मणा. जडमां शुभाशुभ वृत्तिनी, जब कल्पना उठे नहीं; तब ज्ञान आनंद प्रकटता, अनुभव खरो भासे सही. शुद्धात्मना उपयोगथी, साक्षी बनी सहु देखवू; प्रारब्धको भोगवा, थातुं प्रवर्तन पेख.. मन इन्द्रिय प्राणने, देहर्नु, जीवन कर्मे छ सही; उपयोगी साक्षी बनी, सहेजे वहो शांति लही. शुद्धात्मना उपयोगमां, रहीने स्वभावे म्हालशो; मोहे विचारो जे उठे ते, बंध करीने चालशो. सर्वे शुभाशुभ परिणति ते, आत्मयी न्यारी गणो; तेमां न मुंशाशो कदि, कर्तव्यना पाठो भणो. आसक्तिवण कर्तव्यने, करवां ज ए व्यवहार छ व्यवहारनय ए धर्मनो, पोषक महा आधार छे. जडना शुभाशुभभावमां, मुंझो नहीं मुंझो नहीं; ए जीवतां मुक्तिदशा, परब्रह्मरस पामो सही. मनमां शुभाशुभ वृत्तियो, उठे नहीं ते मुक्ति छे; ए मुक्ति वानगी पामियो, त्यां मृत्यु नहीं उत्पत्ति छे. जडना ज पर्यायो सकल, जडथी उठे जडमां भळे जट द्रव्यथी न्यारा नहीं, जाणे ज ते आतम मळे. जड् द्रव्यना भेगो रहे, जडद्रव्यरूपे नहीं बने; एवोज आतम हुं सदा, नामी अनामी अज भणे. जड जगत्मां रहे, अने, जड जगत्थी न्यारो रह्यो। नामो अनंतां मुज थयां, पण नामवण निश्चय लह्यो. For Private And Personal Use Only
SR No.008545
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages198
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size9 MB
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