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सात्त्विक भक्ति पुखिने, सेवाथकी आगळ वहो; परब्रह्मनो अनुभव बो, आनंदरूपे थई रहो. जडमां अने मनमां रही जे, ग्रहण त्यागनी कल्पना; ए ग्रहण त्यागनी एत्ति वण, रहेशे नहीं किंचित् मणा. जडमां शुभाशुभ वृत्तिनी, जब कल्पना उठे नहीं; तब ज्ञान आनंद प्रकटता, अनुभव खरो भासे सही. शुद्धात्मना उपयोगथी, साक्षी बनी सहु देखवू; प्रारब्धको भोगवा, थातुं प्रवर्तन पेख.. मन इन्द्रिय प्राणने, देहर्नु, जीवन कर्मे छ सही; उपयोगी साक्षी बनी, सहेजे वहो शांति लही. शुद्धात्मना उपयोगमां, रहीने स्वभावे म्हालशो; मोहे विचारो जे उठे ते, बंध करीने चालशो. सर्वे शुभाशुभ परिणति ते, आत्मयी न्यारी गणो; तेमां न मुंशाशो कदि, कर्तव्यना पाठो भणो. आसक्तिवण कर्तव्यने, करवां ज ए व्यवहार छ व्यवहारनय ए धर्मनो, पोषक महा आधार छे. जडना शुभाशुभभावमां, मुंझो नहीं मुंझो नहीं; ए जीवतां मुक्तिदशा, परब्रह्मरस पामो सही. मनमां शुभाशुभ वृत्तियो, उठे नहीं ते मुक्ति छे; ए मुक्ति वानगी पामियो, त्यां मृत्यु नहीं उत्पत्ति छे. जडना ज पर्यायो सकल, जडथी उठे जडमां भळे जट द्रव्यथी न्यारा नहीं, जाणे ज ते आतम मळे. जड् द्रव्यना भेगो रहे, जडद्रव्यरूपे नहीं बने; एवोज आतम हुं सदा, नामी अनामी अज भणे. जड जगत्मां रहे, अने, जड जगत्थी न्यारो रह्यो। नामो अनंतां मुज थयां, पण नामवण निश्चय लह्यो.
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