SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 58
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनंत ज्योति झळके ज्यांय, आपस्वभावे जावू त्यांय; मन बुद्धिनो नहीं प्रवेश, अलख निरंजन निर्भयदेश. ५४ गया अने ज्यां जाशे संत, गया पछी नहीं आवे अंत; आतम एवो शुद्धप्रदेश, पामंतां नहि रहेतो क्लेश. निश्चयनयथी शुद्ध स्वरूप, अनेकांतथी रूपारूम, राग द्वेषनो द्वैताभाव, पहोंचे नहि जड जगना दाव. एवा शुद्धातमनुं तान, उपयोगे तेनुं छे भान; पछी भले तन रहे न माण, सरखां घर वन ने शमसान. ५७ रोइ रोइने रुखो एम, आत्मभान प्रगटे गुणक्षेम, शोक करीने शोचो एह, अनुभवो आतम वैदेह. आतम देशमां जया विहार, कीधो तनु छडी निर्धार खम्या समाव्या सर्वे जीव, देह त्यजंतां रही न रीव. ५९ स्थूलदेहनो नाश ज थाय, मोह टळ्या वण दुःख न जाय%; कार्मण देहनो नाश ज याय, पूर्ण मोक्ष त्यारे प्रगटाय. ६० राग द्वेषनो क्षय जो थाय, केवलज्ञान तदा प्रगटाय; देह छतां ज्ञानी वैदेह, जीवन्मुक्त दशा छे एह. अनंत जीवन पामे जेह, आवी पाछो कहे न सेह; पाम्यो ते निजमांही समाय, वैखरीथी शुं वर्णव्यु जाय. ६२ तिरोभावी शक्तियो जेह, आविर्भाव थावे तेह; परमातमपद ते छे सत्य, पामंतां नहि बाकी कृत्य. ६३ मातम आनंद पाम्गो जेह, इन्द्रिय सुखथी विरम्यो तेह; आतम आनंद रसनां ल्हाण, अनुभव्यां के पामी ज्ञान. ६४ सोहिणी. पाछळ अमारी आमा, आतम अनुभव पामशो; मननी पति ज्यां नहि रहे, त्यां ठाम ठरीने जामशो. ६५ ।। For Private And Personal Use Only
SR No.008545
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages198
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy