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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समय समये मृत्यु छ, मनमोह विचारे समये समये जीवन छ, शुद्ध उपयोग धारे. आतम. ४२ देह टळ्या छतां आतमा, अमे जीवता जाणो; एवा जीवता ओळखे, तेह जाग्यो जमानो. भातम. ४३ आतमरूपे जे थया, अमने जीव्या ते जाणे; देहथी जीवता जाणता, रह्या ते अज्ञाने. आतम.४४ प्राण देहरूप नहि अमे, रडो देहने शाने ? नित्य आतमा तेहने, रडवू छे अस्थाते. आतम. ४५ जड देहनी शी प्रीतडी ! आतमप्रेम से साचो आतमाचिने धारशो, आतममांहि सचो. आतम. ४६ आतममा सहु धर्म छे, जाणी आतम. रमशो; मातमारसने पामतां, सहेजे जडरस बमशो. आतम. ४७ प्रगटे नहिं मन स्वप्रमां, पंचइन्द्रियभोग आतमस्स प्रगटे तदा, शुद्ध गुणसंयोग, आतम. ४८ आतमरसने चाखतां, स्हेजे जडरस ठळतो; आतम आपोआपने, आपरूपे मळतो. आतम. ४९ एवी दशा उपयोगमां, नहीं मरणनी भ्रान्ति आपोआप स्वभावमां, वर्ने अध्यात्मशांति. __ आतम. ५० जड तो जडमांहि मळे, आतम आतममांहि; आतमना उपयोगमां, नहीं मरणनी छांहि. आतम. ५१ जड जडरूपे नहीं मरे, एम निश्चय जाणो भातम आतमरूपमां, नहीं मरण ज मानो. आतम. ५२ चोपाइ. असंख्यप्रदेशी छे दरबार, आत्गमभुनो ज्यां निर्धार; उपयोगे त्यां करवो वास, ज्यां नहि पस्पुद्गलनी आश. ५३ For Private And Personal Use Only
SR No.008545
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages198
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size9 MB
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