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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नमुरे नमुं मन वाणीने, नमुं देहने भावे तमसंगे आतम थयो, आपोआप स्वभावे. आतम. २९ नमुंरे नमुं गुरु देवने, कर्यु घट अजवालं; पूर्णकृपा करी बोधथी, उघाड्युं मोहतालं. आतम. ३० नमुरे नमु सर्वविश्वने, उपग्रहने दीधा, आत्मिोन्नतिक्रम हेतुमां, उपकार प्रसिद्धा. आतम. ३१ नमुरे नमुं कर्मप्रकृति, निज साथे रही जे; समभाव तेपर आवतां, जेह रीजे न खीजे. आतम. ३२ मृत्युनो पडदो वटावीने, जतां आगल शांति तनु प्राणनाज वियोगथी, भावी पूर्णोत्क्रान्ति. आतम. ३३ सर्वथा पूरण मुक्तिमां, नहीं जन्मने मरणुं; मुक्ति मळशे ए भाविमां, कर्यु महावीर शरणु; आतम. ३४ वस्त्रसमुं तनु बदलवू, एमां शोक न भीति; आकाशसम निज आतमा, ध्या उपयोग ज्योति. आतम.३५ मुजपर प्रीति थाय तो, शुद्ध आतम ध्याशो; आतम आनंद पामशो, पछी दूरे न थाशो. आतम. ३६ एकेक दृष्टिथी दर्शनो, सहु प्रगट्यां पेखो, असंख्यदृष्टि छे आत्ममां, अनुभव लहीं देखो. आतम. ३७ सर्व दृष्टि सापेक्षथी, निजमां समजाइ मतपंथ कल्पना सहु टळी, रह्यो निजमां समाइ. आतम. ३८ एकांत दृष्टियो सहु शमी, अनेकांतप्रकाशे; हठ कदाग्रह नहि रह्यो, आपोआप विलासे. आतम. ३९ लख्यु कथ्यु जे रुचे नहीं, त्यां ज समता धारो; मन आतमनी भिन्नता, ओळखी निज तारो. आतम. ४० देह रहे वा नहीं रहे, तेनो शोक न भीति; पुद्गल पुद्गल रीतिमां, वर्ते तेह नीति. आतम. ४१ For Private And Personal Use Only
SR No.008545
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages198
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size9 MB
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