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चतुर्विध संपनी महत्ता जेटली वर्णवीए तेटली न्यून छे. श्री तीर्थकरो पण नमोतित्थस्स बोली चतुर्विध संघने नमस्कार करे छे, एवा श्री संघनां कर्तव्यो शु? छे ते संघ कर्तव्य ग्रन्थमा जणान्यां छ. संघनी आगळ मारा सरखा एक अणु साखा छे. संघनी सेना भक्तिथी स्वर्गनी अने सिद्धिनी प्राप्ति थाय छे. चतुर्विध संघमाथी तीर्थकर मूरिवाचक साधु वगेरेनी उत्पत्ति थाय छे. संघनां कर्तव्योने संघ जाणीने ते प्रमाणे प्रवर्ते तो संघनी प्रगति थयाविना रहे नहि. संघनी आगळ कोइ महान् नथी. गृहस्थ श्रावक श्राविकासंघमां ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य अने शूद्र र चार वर्ण जो गुणकर्मथी हयाती नथी भोमवती तो संपनी हानि पडती थाय छे. गृहस्थ संघने प्रजासमाजनी साथे विश्वमा बाह्य आजीविकादि संबंधथी जीववामाटे संबंध राखीने जन्मभूमि, समाज, धर्म, राज्य लक्ष्मी कुटुंबादिना रक्षण माटे सर्व प्रकारे तैयार रहे, पडे छे अन्यथा तेनुं दुनियामां नामनिशान पण रहेतुं नथी. गृहस्थ श्रावकादि संघना अस्तित्वमा त्यागी संपर्नु अस्तित्व छे अने त्यागी साधुसाध्वीरूप संघना अस्ति। खमां गृहस्थ श्रावक संघर्नु अस्तित्व छे, बन्ने भेगा मळोने दुनिः यात्रां जैनधर्मनी चढती करी शके छे. चतुर्विध संघ वर्तमानकालमां जे वंइ करे तेमां तीर्थकर नी आज्ञा छे. अअमत विष्णुकुमार मुनि अने कालिकाचार्य श्री संघनो रक्षामां तथा रक्षारूप सेवा भक्तिमा पोतानी शक्तियोने फोरवी हती. योगी त्यागी समाधिवंत महामुनियो पण श्री भद्रबाहुनी पेठे संघनी आज्ञाने उठावीने ते प्रमाणे वर्ते छे. संघना अस्तित्वमांज स्थावरतीर्थ जैनशासन आदि सर्वन अस्तित्व छे. संघनी सेवा भक्तियां सर्व तीर्थकगे वगेरेनी सेवाभक्ति समाइ जाय छे. माटे संघ कर्तव्य ग्रन्थ रचीने संघनी सेवाभक्ति की संघनी उन्नति जणावी छे. तेमां कंइ वीतराग महावीर प्रभुनी आज्ञा विरुद्ध लख्यु होयतो संघनी आगळ माफी मागुं छु. प्रजासमाज
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