SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 26
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५ कर्तव्य ग्रन्थ रचीने प्रजासमाजनां कर्तव्य दर्शाव्यां छे ते प्रजानी सत्य उन्नति थाय तथा प्रजासमाज पोते मार्गानुसारी गुणवाळो बनी धर्मनी योग्यता पूर्वक धर्मने भाविमां प्राप्त करे तेज मुख्य उद्देशने ध्यानमा राख्यो छे. प्रजासमाजने सात्विकधर्मना मार्गे चढाव्याथी संघनी वृद्धि प्रगति थाय छे, छेवटे प्रभु महावीर देवनुं समाप्ति मंगल करीने ग्रन्थ समाप्त करवामां आव्यो छे. भजनसंग्रह दशमा भागमां अध्यात्म ज्ञानपदो, भक्ति, योग, नीति, सेवाभक्ति वैराग्यादि पदोनो समावेश थाय छे, तेमांनां केलांक आंतरिक स्वगत ओमारिकरूप अनेकेटलाक उपदेशरूप छे ते गुरुगम लेइ वांचशे तेओने तुर्त अवबोधाशे. भजनसंग्रहदशमो भाग अने तेनी प्रस्तावना वांचनाओए ते पहेलांना नव भाग अने तेनी प्रस्तावना वांचवी के जेथी तेओने परितः ज्ञान थाय अने आत्मानी परमात्मता प्रगटाववामां विशेष उत्साह प्रवृत्ति याय. भजनो पदो बगेरे फक्त दिशा देखाडे हे पण गीतार्थ गुरुने शीर्षपर स्थापन करीने आत्मानी शुद्धि कर बानो पुरुषार्थ कर्याविना मुक्तिनी प्राप्ति थती नथी. गीनार्थ गुरुनी संगति करवामां एक क्षण मात्र पण प्रमाद न करवो. अध्यात्मज्ञाना अनुभवथी सर्वप्रकारना कदाग्रह टळी जाय छे अने धर्म कर्म करवायी व्यवहारधर्मनी आराधना पूर्वक सर्व कर्मथी मुक्त शुद्धात्मा थाय छे. भजन ग्रन्थादिकथी संघनी सेवा भक्ति करतां म्हारा आत्मानी पूर्णता प्रगटे अने सर्व जीवो आत्मानी पूर्णता अगटावो एज इच्छु. इत्येवं ॐ अँ महावीर शान्तिः ३ वि. संवत् १९७९ श्रावण शुक्ल पंचमी. सु. विजापुर विद्याशाला. For Private And Personal Use Only
SR No.008545
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages198
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy