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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समकितीने अध्यात्मज्ञान प्रगटे छ. अध्यात्मज्ञान प्रगटया बाद अध्यात्मज्ञानवडे आत्मस्वभावे आत्मामां परिणमधु, एवं जे निश्चय चारित्र छे ते छठागुण स्थानकमां अने विशेषतः सातमागुणस्थानकथी विशेष प्रकटे छे. ज्यारे व्यवहार चारित्रमा पूर्ण स्थिरता थाय छे अने गीतार्य गुरुनी आज्ञा प्रमाणे वर्तन थाय छे तथा व्यवहार अने निश्चयनो पूर्ण अनुभव आवे छे तथा गीतार्थ मुनि गुरुनी पूर्ण कृपा मेळवीने अध्यात्मज्ञाननी प्रवृत्ति थाय छे त्यारे क्रियामां अने ज्ञानमां स्थिरता वधे छे अने सर्वदिशानो अनुभव आवे छे अने तेथी एकदेशीनी एकांत आग्रहदशा रहेती नथी. ज्ञानी गीतार्थ मुनिवरनी सलाह लेइ अध्यात्मज्ञान प्रतिवळवं, अन्यथा व्यवहारधर्मसाधनना अधिकारथी पण भ्रष्ट थवानुं थाय छे. ए. कांत शुष्क आत्मज्ञानीओथी चेतता रहेg, कारण के तेओ बालजीवीने तेमना धार्मिक क्रियारुचिना अधिकारथी भ्रष्ट करे छे अने बालजीवोने अध्यात्मज्ञानदशानी दशापण तेवी क्रियारुचि दशा प्राप्त थयाविना प्रगटती नथी तेथी तेओ उभयथी भ्रष्ट थाय छे माटे बालजीवोएतोगीतार्थ आचार्यनी सलाह लेइ अध्यात्मज्ञाननां भजनोमां प्रवृत्ति वा नित्ति करवी. अमने गुरुनी कृपाथी व्यवहारमा तथा निश्चयमां श्रद्धा स्थिरता थइ छे तेथी एकांत वलण थयुं नथी अने अन्योने जैन शास्त्रोना ज्ञानपूर्वक अनेकांत वलण रहे ते माटे खास सूचना करवामां आवे छे के जेथी अध्यात्मज्ञाननी लगनी लागे तोपण श्रीमद् यशोविजयजी उपाध्यायजी तथा श्रीमद्देवचंदजीनीपेठे चारित्रादि धर्म व्यवहारमां स्थिरता वधे अने अध्यात्मज्ञाननो उपयोग पण ताजो रहे. एकांतक्रिया जडवादीओने अध्यात्मज्ञान तरफ अरुचि होय तो तेओने अध्यात्मज्ञाननां शास्त्रोनुं रहस्य समजवा माटे गीतार्थ सूरिआदिनी सेवाभक्तिमां लयलीन थवा विज्ञलि.करवामां आवे छे. For Private And Personal Use Only
SR No.008545
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages198
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size9 MB
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