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मागम वेदशिरोमणि पराविधा वेदान्तशान कहवाय छे. सुफीओनी ते प्रेममस्तीनी शराब छे ( अर्थात् मीठी आनंददायक वस्तु छे ) दुनि. यामां सर्व दर्शनोमां छेल्लापां छेल्ली अध्यात्मज्ञान विद्या छे, तेनो पार पामे छे ते तरी जाय छे. दुधन सार जेम घृत छे तेम ज्ञान- सार अध्यात्मज्ञान छे तेने जे पचवे छे, तेमां जे लयलीन थाय छे, तेना हृदयमांथी अध्यात्मज्ञाननां भजनोनो प्रवाह नोकळे छे. अध्यात्मज्ञानी गोतार्थोना समागममा दररोज घगाकाल पर्यंत आववाथी आत्मज्ञाननो अनुभव आवे छे. अध्यात्मज्ञानीगीतार्थ गुरुने माथेकरी गुरुनी सेवा भक्तिमां जेओ समर्पाइ जाय छे अने पोताना नाम रूपने भूली जे गुरुमां लयलीन बने छे अने गुरुनी आज्ञाओने अमलमा मूके छे तेने बारवर्षे आपोआप हृदयमां अध्यात्मज्ञाननो प्रकाश थया विना रहेतो नथी. अध्यात्मज्ञाननां पुस्तको वांचवा मात्रथी तो फक्त अध्यात्मज्ञाननी रुचि प्रकटे छे अने गुरुने शीर्षपर धारण करीने आत्मज्ञान मेळयया पुरुषार्थ करतां आत्मानो साक्षात्कार अनु. भव थाय छे. शुद्ध निश्चयनय कथित आत्मानुं शुद्ध स्वरूप अनुभववा माटे आत्मज्ञानो गुरुनुं शरण स्वीकारी तेमनी आज्ञा प्रमाणे वर्त. वानी खास जरुर छे, ते विना आत्मानो साक्षात्कार करवा बीजो उपाय नथी. गीतार्थ तुरुनी सेवा भक्तिमां जीवंतां जेओ मरजीवा बने छे ते जीवतां प्रभु परमात्मारूपे आत्मानो साक्षात्कार करे छे. मनुष्य जन्मनुं सत्यध्येय परमात्मपद प्राप्ति करवी तेज छे अने ते माटे आत्मज्ञान तेन मुख्य उपाय छे अने आत्मज्ञानमाटे गीतार्थ गुरुना शरण पूर्वक तेमनी आज्ञा प्रमाणे वा विना अन्य कोई उपाय नथी. सगुराने अध्यात्मज्ञाननो परिपाक थाय छे अने ते बाह्यमां निर्लेप अनासक्त रहीने नीतिमय जीवन गाळतो छतो स्वा. धिकारे बाह्य कर्तव्य कार्योंने पण कर्या करे छे. ते लोकमां लोकाचार रीतिए वर्ते के अने आत्मामां आत्माकार परिणतिए वर्ते छे. तमो.
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