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मां अध्यात्मज्ञान श्रेष्ट छे. अध्यात्म ज्ञानथी आत्मानी पूर्ण शुद्धि थाय है. श्रीमद् आनंदघनजी (आतमज्ञानी श्रमणकहावे, वीजतो द्रव्यलिंगीरे) एम कथी आत्मज्ञानीने श्रमण कथे छे अने अन्योने द्रव्यलिंगी साधुओ तरीके जणावे छे. एकांत ज्ञानवादी तथा एकांतक्रियावादी न बनवु जोड़ए अध्यात्मज्ञाननां भजनोमां-पदोमां निश्वनयनी दृष्टि मुख्य होय छे ते ध्यानमा राखीने वाचकोए व्यवहार नयकथितधर्मथी पराङ्कुख न थवं जोइए, ज्ञानमां शुष्कतानो दोष arcaानो भय रहे छे अने एकांतक्रियामां जडतादोषनो संभव रहे छे ते बेथी मुक्त थवाय तेवी रीते भजन पदोना ज्ञानथी आत्म हितार्थ प्रवृत्ति करवी जोइए. पद भजनोमा मोटाभागे ज्ञानीओना हृदयज्ञानरसनो उभरो नीकळे छे एम अनुभव आवे छे, अध्यात्म ज्ञानानुभवीओने अध्यात्मज्ञाननां भजनो-पदो रुचे छे. योगानुभवीओने योगनां भजनो पदो रुचे छे. भक्तोने प्रभुभक्तिनां पदो रुचे छे वैरागीओने वैराग्यनां भजनो पदो रुवे छे. जेवा जेओ अधिकारीहोय छे तेओने ते रुचे छे तेमां दलील देवानी कइ जरुर पडती नथी. जे मनुष्योमां जेवुं होय छे तेवुं वाणीद्वारा बहार प्रकाशे छे.
साबु अने जली जेमनी शुद्धि तुर्त थाय छे तेम अध्यात्म ज्ञान ध्यान योगमां रमणता करवाथी आत्मानी शुद्धि थाय छे अने आत्मानुं स्वाभाविकज्ञान स्फुरायमान थाय छे, आत्मज्ञानध्यान समाधिमा लीन रहेवाथी मस्तदशा प्रगटे छे अने तेथी सर्व प्रका rai बाह्यांतर बंधनोथी आत्मा स्वतंत्र वालकवत् निर्दोषी शुद्ध मस्त बने छे, पश्चात् तेने दुनियानी परवाह रहेती नथी. जेणे अध्यात्म ज्ञानथी एकवार आत्मानी आनंदमस्तदशा अनुभवी छे तेने अध्यात्मज्ञानरसनी खुमारीनो अनुभव आवे छे अने ते मोक्षमार्ग प्रति गमन करे छे, अध्यात्मज्ञान तेज आत्मानी गुप्त विद्या छे अने ते सर्व
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