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ॐ अहँ महावीरायनमः भजनसंग्रहदशनोभाग.
वक्तव्य ॥ प्रभुसर्वज्ञ महावीरदेवनी कृपाथी सं. १९७८ ना जेठ सुदि त्रयोदशे मे साणाना संघना आग्रहे मेसाणामां प्रवेश थयो. संघना आग्रहथी त्यां चातुर्मास रहेवानुं थयु. त्यां घणी निवृत्ति मळी. त्यां जेठ मासथी आरंभी आसो मास सुधीमां जे जे व वते जेवी जेवी भावनाओ प्रगटी ते ते वखते तेवां भजन पद्यवगेरेनी रचना थइ छे. मुख्यभागे आध्यात्मिक पद्यो छे अने गौणताए नीति सदुपदेश आदिनां भजनो छे. सातनयोनी अपेक्षाए सम्यग्दृष्टि मनुष्यो भजनो वगेरेनो सवळो अर्थ ग्रहण करे छ. सम्यग्दृष्टिमनुष्योने मिथ्या व शास्त्रोपण सकळां परिणमे छे अने मिथ्याष्टिवाळाओने सम्यक्त्वकारक शास्त्रोपण अवळा परिणमे छे एम नंदि सूत्रमा दर्शाव्युं छे ते प्रमाणे जे सम्यगज्ञानीओ हशे तथा सम्यग्ज्ञानीओना बोधप्रमाणे वर्तनारा हशे तेओने भजनसंग्रहदशमो भाग पण अ. नेकनयोनी सापेक्षदृष्टिबळे सकळाअर्थरूपे परिणमीने आत्मानी शुद्धि करनार थशे अने प्रतिपक्षी दुर्जन मिथ्यादृष्टिजीवोने तो सवळो अर्थ पण अवळारूपे परिणमीने मिथ्यामोहनी वृद्धि करनार थशे. दुर्जनो तो पयमांथी पण पूरा काढनारा होय छे तेओ तो भजन पदोना अर्थाने पोतानी मतिथी खेंचीने अवळाअर्थतरीके पोते माने छे अने लोकोने पण तेवी रीते समजावी भ्रांतिमां नाखे छे. बालजीवोने विद्वानो जेम दोरवे तेम दोरवाय छे तेथी तेओने सम्यग् ज्ञानीओनो समागम थाय छे तो ते तरफ वळे छे अने विद्वानो के जे मिथ्या दृष्टिवाळा तथा प्रतिपक्षी दुर्जनोनो समागम थाय छे तो ते तरफ वळे छे अने तेथी तेओ परतंत्र बने छे. सर्व प्रकारना ज्ञान
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