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ज्ञानानन्द प्रकटता जहां है, वह तीरथ है प्यारा: ज्ञानसमाधिसें आत्मतीर्थका, ज्ञानानन्द उजियारा. इमेरा० २ आतममें सब तीर्थो समाये, जानत नाहि गमारा: । बुद्धिसागर आतमतीरथ, आपोआप बिचारा.
हमेरा०३
हमेरो आतमप्रभु है प्यारो. हमेरो आतमप्रभु है प्यारो, घटघटव्यापक जगमें विलासी; सबमें हे सब न्यारो..... .... .... ....हमेरो० आत्मवण दिल क्षण न सुहावत, लागत जग सब खारो; जल बिन कमल न मत्स्य न जीवत, जगजीवन आधारो. ह०१ हिंदु मुसल्मीन पारसी ख्रीस्ति, बौद्ध रु जैनमें धारो सर्व प्राणीमें है प्रभुआतम, उच्च न नीच नठारो. हमेरो० २ राम रहिमान अरिहंत हरिहर, नाम अनेक प्रकारो धुद्धिसागर ब्रह्ममहावीर, सच्चिदानंद अपारो. __ हमेरो०३
आतम !!! मोहसे नहि भरमाना.
सोरठ. भातम ! मोहस नहि भरमाना, मोह महाशयतानअरि है। उसकुँ न दिलमें लाना........ ...............आतम काम-क्रोध मान माया लोग रु, निन्दा मोह है माना: सर्वशुभाशुभ कल्पना मोह है, उसकुं न दिलमें लाना. आतम० १ जबतक दिलमें मोह प्रगटता, तबतक ज्ञान क्या ध्याना; याप राग द्वेष है दिल्में, तावत् तुम दुःखखाना. आतम०२
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