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आतम- ३
मोह पराधीन है तुम यावत् , तावत् तेरा न माना; मोहंगुलामीपनासे जीवो, करते है मोहताना. आतम ! छोड दें मोहगुलामी, ज्ञानसें हो सावधाना; बुद्धिसागर आतमधर्ममें, हो जा महामस्ताना.
आतम०४
हमने ऐसी समाधि लगा.
अशावरी. हमने ऐसी समाधि लगाइ, ध्यान रु ध्याताध्येयको भेद न; मन बुद्धि बिसराइ.
हमने नाम र रूपको मोह नहि कछु, बासना सबहि बिलाइ, पिंड ब्रह्मांडको आश्रय नहि कुछ, उलटिअखियां सुहाइ. हमने० १ राग न द्वेष न हर्ष न चिंता, अनंतज्योति जगाइ; अनंतआनंद उलट्यो हृदयमां, मिटगइ मोहलडाइ हमने०२ बंध न मोक्ष न जन्ममरण नहि, समता ममता न कांइ; बुद्धिसागर ब्रह्ममहावीर, परमप्रभुता पाइ. हमने० ३
खेलं छं हुं तो बाजीगरनी बाजी. खेल छु हुं तो बाजीगरनी बाजी, था, न राजी नराजी. खेलुं० आतमनटकी माया विलक्षण, जाणे शुं ? ब्राह्मण काजी आतमअर्थे प्रकृति माया, ताबे थ रही नाची. खेलुं० १ प्रकृति रही जीवोपर गाजी, ब्रह्मदासी बनी छाजी निःसंग साक्षी आतप ईश्वर, विश्वमा रहियो गाजी. खेलुं० २ खेल हमारा अगम अपारा, जाणे नहीं जडपाजी; बुद्धिसागर आतमखेको, खेलंतो थयो राजी. खेलं.३
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