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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उंचा न नीचा न भारे न हलका, स्पर्श न शद न ठगना; पावन बहार परासें न्यारा, तुर्यातीत ठिकाना. हमेरा० २ निद्रा न स्वम न जाग्रत जूदा, निर्लेप नभ उपमाना; घट घट व्यापक ज्ञानी सो समजे, पीना नहीं जिहां खाना. हमेरा०३ पिंड न खंड न पूर्ण अखंडित, अज अविनाशी सुहाना; बुद्धिसागर ब्रमस्वरूपी, हमघर हममें समाना. हमेरा. ४ हमने ऐसी हवा खूब खाई. आशावरी. हमने ऐसी हवा खूष खाइ, आधि व्याधि उपाधि टळी सत्रः आनंदघेन छ्वाइ.... .... ........हमने वायुसे न्यारी अपरंपारी, विनभुवन नाहि माइ, सबमें है वह सबसे न्यारी, भ्रांति मिटे प्रगटाइ, हमने०१ सत्यविदानंदरससे रसाइ, ज्योतिज्योतिरुप छाही: जन्ममरण नहि राग न द्वेषा, उलटी अखियां सुहाइ. हमने० २ मन बुद्धि चित्त नहि अभिमाना, घटघटमेंहि समाइ, पुद्धिसागर प्रम हवा स्वच्छ, पाइन गातां गाइ. हमने० ३ हमेरा आतम तीर्थ अपारा. भाशावरी. हमेरा आवम तीर्थ अपारा, दर्शनशान चरणमय आतम, सबतीरथ आधारा.... .... ....हमेरा० आतम ती नाही. उपाधि, है नहीं मोहमबारा भासमतीर्थसें सब तीरथकी उत्पत्ति निर्धारा, हमेरा०१ For Private And Personal Use Only
SR No.008545
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages198
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size9 MB
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