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९२ चावो ज्ञानानन्दपान.
चावो ज्ञानानन्दपान, अमीरसी चावो ज्ञानानन्दपान. आतमाऽसंख्यप्रदेशे उपज्युं, अनुभवबेली सुतान दामेघना जलथी सिंचाणु, संयममंडपतान, चारित्रकाथों समकितचूनो, मेळवतां वधे वान; सत्यसोपारी एकताऐलची, बीडां बहुगुणवान. संतजनो ने पाननां बीड, आपी करो सन्मान बुद्धिसागरपरमानन्दमां बनी गयो गुल्तान.
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यातम !!! अनुवांग पीना. आशावरी,
आतम ! ! ! अनुभव भांगकुं पीना, ब्रह्मजीवनसें जीना. आतम० ध्यानशिलापर गुणमशाला, वाव करना झीना; समताजलसें सम्यग धोना, उपयोगे हो लीना. दिलण्याला अनुभव भांगका, आनन्दरसकुं पीना, बुद्धिसागर आत्म उजागर, प्रगटे परम प्रभु विह्ना.
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अमी० १
अमी० २
अमी० ३
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हमेस घरकुं हमने बिछाना. आशावरी.
हमेरा घरकुं हमने पिछाना, आदि न अंत न देहथी न्यारा
ज्ञानानन्द बखाना.... .... हमे.रा. बलता न जरता न खरता न पडता, असंख्यप्रदेशी माना; काला न पीला न राता न श्वेता, लंबा न चौडा जाना. हमेरा० १
आतम० १
आतम० २