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वस्त्र तज्यां पण देह राग तो क्याथी त्यागे, कहेशो ज्ञाने देहराग तो क्षणमा भागे; ज्ञाने नासे देहराग वस्त्रे शो ? वांधो, करी कुयुक्ति ग्रह्या पक्षने फोगट सांधो; परिग्रह मूर्छा मूळ छे वस्त्र संयम हेत छे, मुक्ति अर्थ स्थविर कल्पे वस्त्रनो संकेत छे. ॥८॥ वस्त्र धरे संयमनी रक्षा हेते समजो, वस्त्र पात्र छ स्थविर कल्पमा निजमां रमजो; ज्ञानावरणी प्रतिबंधक छे केवलज्ञाने, नहीं देह प्रतिबंध वस्त्रने मिथ्या माने; उपशमादि धर्ममां हितनु नहि प्रतिबंध छे, प्रतिबंधक त्यां वस्त्र माने कदाग्रही ते अंध छे. ॥८२।।
नहि शरीरे राग ध्यानथी केवल प्रगटे, वस्त्र छतां किम ध्यानथकी ती केवल विघटे; प्रथम वस्त्रनो राग, ज्ञानिने ध्याने नासे, नाशे तनुनो राग, ध्यानथी ज्ञाने भासे; युक्ति युक्त सिद्धांत छे वस्त्रधारी सिद्धता, वस्त्रधारी सिद्धिया जिम मरुदेवाजी बुद्धता. ॥८३॥ संयम रक्षा हेत वस्त्रथी कशी न हानि, स्थविर कल्पीनो मार्ग समजतो नहि अभिमानी: तनु छे मुक्ति हेत ज्ञानिने वस्त्र ज तेवु, नग्न मुनिने पिंडग्रहण तनुरक्षण जेवू; शरीर रक्षाहेतुमा आहार तेवू वस्त्र छे, मूढ कदाग्रही मानवीने शास्त्र ते तो शस्त्र छे. ॥८४॥
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