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૩૬૧ कोइक बोले बोल सत्य साधु को गणवा, सूत्रे भाख्या गुण साधुना क्यां ते भणवा; जोतां को न जणाय साधु एवो जग सारो, मार्नु नहि हु साधु'पक्ष छे साचो मारो; दोषदृष्टिथी कागडा एकांते एम भाखता, साधु विना नहि श्राद्ध जगमां रस तेनो नहि
चाखता. ॥३३॥ सत्यधर्म वीतराग ज्ञानथी जेवो परख्यो, तेवीरीते सत्य साधुने ज्ञाने निरखो; द्रव्य क्षेत्र ने काल प्रमाणे साधु होवे, भाख्यु भगवतीसूत्र मूढ ते क्यांथी जोवे; निर्ग्रन्थ भाख्या पंचधा आद्य दो आधार छ, गुरुगम जोजो मानवो ! शो तेनो आचार छे. ॥३४॥ दोषदृष्टिथी देखे तेने दोष ज भासे, धत्तुरभक्षी भव्यने जेम पोत प्रकाशे; गुण देखतां होय गुण ते भासे साचा, काळ प्रमाणे गुण होवे भाखे जिन वाचा; साधुव्रत अभ्यासथी गुण अनंता उपजे, उद्यम सेवे मुनिवरा गुणठाणे गुण नीपजे. ॥३५॥ माने नहि जे साधु होय श्रावक ते शानो, ? समकितव्रत स्वीकार साधुनी पासे मानो; श्रावक गुण एकविश न देखे निजमां पाते, देखे परनां छिद्र गुण ते क्याथी देखे: श्राद्धत्व निजमांनहि अने नवकारशीमांजायछे, श्रावक नाम धरावीने ते मिष्ट लाडु खाय छे. ॥३६॥
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