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मनदृष्टि अने आत्मदृष्टि.
आतम आपोआप विचारा, तेरा सब है पसारा. आतम० मनदृष्टिसें बन्धन सब है, मन है सब संसारा; आत्मदृष्टि से बन्ध न मुक्ति, पुण्य न पापप्रचारा. आतम० १ मनदृष्टिसें जन्म मरण है, सुखदुःख काम विकारा;
आत्मदृष्टिसें जन्म न मृत्यु, आनंद अपरंपारा. आतम० २ मन सेतान है आतम अल्ला, मन है सब अंधियारा; मन है माया कर्मकी जड है, मनका सब व्यवहारा. आतम० ३ सत्त्व रजस् तमसे है न्यारा, आतम सब आधारा; ज्ञानसें व्यापक पूर्ण निरञ्जन, शानीयोंकुं प्यारा. आतम० ४ तीन भुवनका शहेनशाह है, खेले खेल अपारा; आतम अव्वल आतम आखर, अनंत नूर उजारा. आतम० ५ आतमराज्यमें सब राज्योंका, होत समावेश सारा; आतमराज्यका नाश न कबहु, ज्यां नहि मनका मारा.आमम०६ मनसें होत गुलामी जीवोंकी, आतमप्रभु निर्धारा; बुद्धिसागर आत्ममहावीर, जिनवर है जयकारा. आतम० ७
आत्मकमाणी.
आतम ऐसी कमाणी कमाना, आना नहि फिर जाना. आतम० ब्रह्ममहावीरमांहि फिरना, ब्रमामृतकुं खाना; ब्रह्ममहावीरमांहि सोना, ब्रह्मकुं पीना पाना. आतम० १
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