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अनन्तब्रह्म वर्तुल.
आतम आपोआप समर ले, करना होय सो कर ले. आतम० वेषाचारमतादिक वर्तुल, उनसें आगे विचर लें;
अनंत वर्तुल शुद्धब्रह्म है, लिंगनात मन वर्तुल हद है, आत्मबल बेहद है घटघट, अनंतवर्तुल सर्ग व्यय जहीं, परब्रह्म महावीर है;
निश्चय ऐसा कर लें. आतम० १ अंधेरा वहां पर है; ज्ञानप्रकाशसें तर है. आत्म० २
आपोआप स्वयं हि ऐसा, ज्ञान तो
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ज्ञानी घर है. आतम० ३
क्षुद्र
लघु वर्तुल है;
दर्शन मत पंथ धर्मादिक सब, मनकी ऐसी सबला है, आतम वीर अकल है. आतम० ४ आत्ममहाबरिमें मन लीनता, होतां सुख भरपूर है; अनंतमहावीर अनुभव आता, साकी स्वयं चकचूर है. आतम० ५ अनंत ब्रह्म महावीर वर्तुल, ऐसी जिसकी नजर है; सोहि आतम अल्ला अई, बाहिर ओर अंदर है. आतम० ६ मनकी उपाधि भवबन्धन है, ब्रह्मनूर सागर नामरूपवृत्ति लय होते, दूजाकी न खबर है. आतम० ७
अनंतनभसें ब्रह्म अनंत है, नारी वा नहि नर है:
सबमायासें
उसकी सत्ता एक सभर है, अज्ञानकुं ज्ञानीयोंका, दिलकी कहांसें बुद्धिसागर सुफी सनूरा, सब आलम में
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पर है. आतम० ८
खबर है; अमर है, आतम० ९