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૨૧૮ ब्रह्ममहावीर सुनना स्नेहे, उसमें लगा दे नेना; ब्रह्ममें उठना हसना रोना, ब्रह्मका लेना देना. आतम० २ ब्रह्मवीर है कुटुंब कबीला, नातजात स्मशाना; ब्रह्ममें मरना ब्रह्ममें जीना, आपके आप पिछाना. आतम० ३ बाहिर अंतर ब्रह्मकुं जोना, ब्रह्ममें डंपद खोना; ब्रह्मरूपमें कर्मको धोना, अस्तिपनेसें होना. आतम० ४ वीर वीर मन वचसें जपना, वीरमें लगनी लगाना; शुद्धातम उपयोगे बाबु, अनहद तान जगाना. आतम० ५ जैनधर्म आतमगुण पाना, आतमरूपकुं गाना; आतममांहि मनकुं डुबाना, आतममें गुलूताना- आतम० ६ नामरूप जड पुद्गल न्यारा, भ्रान्तिमें न भूलाना, बुद्धिसागर आत्ममहावीर, आनन्दरूपकुं ध्याना. आतम० ७
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आत्मोपयोग.
आतम तुं हे पूर्ण अनामी, मनकामी तुं अकामी.-आतम० नहि हिन्दु नहि मुसल्मान तुं, तुं नहि जैन गुसाइ: पारसी बौद्ध नहि याहुदी, उंच न नीच इसाइ. आतम० १ ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य न शूद्र, वर्ण न लिंग न जाति; पृथ्वी जल अग्नि नहि वायु, काया वाणी न भाति. आतम० २ वर्ण गंध रस स्पर्श न शब्दा, ए सब मनका पसारा; अन्धकार प्रतिबिंब न छाया, आदि न अंत तुम्हारा. आतम० ३
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