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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२ सापेक्षाए जिनवर गायुं घटतुं सवळु, वक्र जीवोने परिणमे छे मनमा अवछं; ज्ञान एकन द्रव्यरूपे अनंत ज्ञेयो भासता, एक ज्ञान अनंतरूपे एक समय प्रकाशता. केवल ज्ञाने शुद्ध ब्रह्ममां श्रुति सुहाती, एक समय पर्यायरूप अनंत पमाती; जीव द्रव्य ते एक बहु ते एणीपेरे थावे, शुद्धपणे परिणमतां पदकारक जिन गावे, शुद्धमांहि शुद्ध हेतु, अशुद्ध पुद्गल योगथी, बुद्धिसागर अनेकांतनय समनशो श्रुत भोगयी. षड्गुण हानि वृद्धि समय समये थावे, एकोऽहं बहुस्याम् श्रुति त्यां लेखे आवे; ज्ञानगुण छे एक अनेक पर्याय सुहावे, उत्पत्तिव्यय ध्रुवतासंगी श्रुति सुभाव; आत्मशुद्धि थया पछी तो अशुद्धत्ता थावे नहीं, शुद्धचेतन शुद्धरुपे परिणमे गुणनिज ग्रही. ब्रह्मसत्ने असत् जगत् एम बहु जन बोले, सापेक्षा समज्या वण वाक्यने कोई न तोले; आकाशकुसुमवत् जगत् असत् जो मनमा धारो, अनेक दोषो प्रगटे त्यारे चित्त उतारो असत्भाव न दृष्टि देखो ज्ञानी गावे ज्ञानथी, नभोकुसुमवत् असत् मानो जाण्यु ए बेभानथी. एकांते नहि असत् जगत् एम जिनवर कहेवे, सापेक्षाए समजे ते शिवसुखने लेवे; सापेक्षावण श्रुतिवाक्यमा दोष अनेक २४ For Private And Personal Use Only
SR No.008539
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1909
Total Pages308
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size12 MB
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