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समजे तेने सम्यग् न्यायज मनमा भावे उपादान ते निमित्त नहि छे न्याय विचारे, ब्रह्म स्वरुपने समज्या वण तो दोष वधारे; शक्तिने तेम व्यक्ति भावे ब्रह्म भेदो अनुसरो, बुद्धिसागर ब्रह्म सम्यक् समजवाथी मुखवरो. कर्माच्छादित ब्रह्म अने तेम कर्मथी भिन्न, स्यात् जीवो ते ब्रह्म ब्रह्मथी जीवो अभिन्न मुक्ति अने संसारी विविध जीवो जाणो, करे कर्मनो नाश मुक्तिना जीव वखाणो; अष्ट कर्मावरण जेने जीवो तेहि अशुद्ध छे, संग्रहनय सत्ता ग्रहाथी परम इश्वर बुद्ध छे. प्रति शरीरे भिन्न भिन्न छ जीव अनंता, जीव ते शिव स्वरूप ज्ञानियो एम वदंता; कर्म प्रयोगे जीव ब्रह्म ते अशुद्ध होवे, कर्म नाशथी जीवं ब्रह्म ते शुद्धज जोवे; कर्म कारण अशुद्ध परिणति काल अनादि जाणीए, बुद्धिसागर शुद्ध परिणति कर्म नाशं वखाणीए अशुद्ध गुण पर्याय कर्मना योगे थाता, लक्ष चोराशी जीव योनिमां देह ग्रहातां; एक जीव पण अनेक कायारुपे थावे, कारण तेनुं कर्म ज्ञानियो सम्यग गावे; द्रव्यरुपे जीव एकज पर्यायरूपे अनेक छे, स्याद्वाद सापेक्षताथी श्रुति सत्य विवेक छे. २० अनेक जीवनी सापेक्षाए जीव अनंता, भिन्न भिन्न कहे व्यक्ति जीवनी देव भदंता;
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